________________
(९६ ) कि आशाधर कोई सामान्य पुरुष नहीं थे। एक बड़े भारी राज्यके महामंत्रीकी जिनके साथ इतनी गाढ मित्रता थी, उनकी प्रतिष्ठा थोडी नहीं समझना चाहिये । उक्त विल्हण कविका उल्लेख मांडूके एक .खंडित शिलालेखमें है । उसे. छोड़कर न तो उनका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ मिलता है और न आशाधरको छोड़कर उनका किसीने उल्लेख किया है। ऐसे राजमान्य प्रतिष्ठित कविकी जब यह दशा है तव पाठक सोच सकते हैं कि कालकी कुटिल गतिने हमारे देशके ऐसे कितने विद्वानोंकी कीर्तिका नाम शेष न कर दिया होगा ! - आशाधरकी प्रशस्तिमें विल्हण कवीशका नाम देखकर पहले हमने समझा था कि काश्मीरके प्रसिद्ध कवि विल्हण ही जिनकी उपाधि विद्यापति थी, आशाधरकी प्रशंसा करनेवाले हैं। परन्तु वह केवल एक भ्रमःथा । विद्यापति विल्हण और मालवा राज्यके मंत्री कवीश विल्हणके समयमें लगभग डेढ़ सौ वर्षका अन्तर है । विद्यापति विल्हण काश्मीरनरेश कलशके राज्यकालमें विक्रम संवत् ११२० के लगभग काश्मीरसे निकला था। जिस समय वह धारामें आया था, भोर्जदेवकी मृत्यु हो चुकी थी। इससे स्पष्ट है कि विध्यवर्माके मंत्री विल्हणसे विद्यापति विल्हण भिन्न पुरुष थे... .
विल्हणचरित नामका एक काव्य विल्हण कविका बनाया हुआ प्रसिद्ध है । परन्तु इतिहासज्ञोंका मत है कि उसका कर्ता विल्हण
"१-राजा भोजकी मृत्यु वि० सं० १११२के पूर्व हो चुकी थी और१११५ में उदयादित्यको राज्य मिल चुका था, ऐसा परमार राजाओंके लेखोंसे सिद्ध हो चुका है।