________________
.
(९९)
अमरुशतककी उनकी वनाई हुई रससंजीविनी नामकी एक टीका काव्यमालामें प्रकाशित हुई है । इस टीकामें जगह जगहपर 'यदुक्तमुपाध्यायेन वालसरस्वत्यपरनान्ना मदनेन" इस प्रकार लिखकर मदनोपाध्यायके अनेक श्लोक उदाहरणस्वरूप उद्धृत किये हैं और भव्यकुमुदचन्द्रिका टीकाकी प्रशस्तिके नवम श्लोकके अन्तिमपदकी टीकामें पं० आशाधरने भी लिखा है, " आपुः प्राप्तः, के वालसरस्वतिमहाकविमदनादयः।" इससे स्पष्ट हो जाता है कि अमरुशतकमें जिनके श्लोक उदाहरणस्वरूप ग्रहण किये गए हैं, वे ही आशाधरके शिष्य महाकवि मदन हैं । इसके सिवाय प्राचीन लेखमालामें अर्जुनवर्मदेवका जो तीसरा दानपत्र प्रकाशित हुआ है, उसके अन्तमें " रचितमिदं राजगुरुणा मदनेन" इस प्रकार लिखा हुआ है। इससे इस विषयमें भी शंका नहीं रहती है कि आशाधरके शिष्य मदनोपाध्याय जिनका दूसरा नाम 'वालसरस्वती' . था, मालवाधीश महाराज अर्जुनदेवके गुरु थे। ___ अमरुशतककी टीकामें जो श्लोक उद्धृत किये गए हैं, उनसे मालूम पड़ता है कि महाकवि मदनोपाध्यायका बनाया हुआ कोई अलंकारका ग्रन्थ होगा जो अभीतक कहीं प्रसिद्ध नहीं है। हमारे एक विद्वान् मित्रने लिखा है कि वालसरस्वती मदनोपाध्यायकी बनाई हुई एक पारिजातमंजरी नामकी नाटिका है । परन्तु उसके देखनेका हमको अभीतक सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।
मदनकीर्तिके सिवाय आशाधरके अनेक शिष्य थे । व्याकरण, । काव्य, न्याय, धर्मशास्त्र आदि विषयोंमें उनकी असाधारण गति थी।