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गुजरातमें जो सोलंकी (चालुक्य) राज्यका शाखाराज्य स्थापित हुआ था, वह भी राठौरोंके हाथमें आ गया था । इस तरह ये दोनों राज्य भी राठौर राज्यके अन्तर्गत हो गये थे और दन्तिदुर्गसे लेकर खोटिगदेवके राज्यकाल तक (शक संवत् ८९४ तक ) राठौर वंशके ही अधिकारमें रहे थे । शक संवत् ८९४ में मालवाके परमार राजा श्रीहर्पने राठौरोंपर विजय प्राप्त की थी और मान्यखेटनगरीको लूटी थी और उसी समय खोट्टिगदेवका देहान्त हुआ था। खोट्टिगदेव अमोघवर्ष प्रथमके प्रपौत्रका पुत्र था । इसीके समय राठौरोंकी राज्यलक्ष्मी प्रभाहीन हुई । ___ अमोघवर्ष प्रथमके समय राष्ट्रकुटवंशकी स्वतंत्र राज्यलक्ष्मी उन्नतिके शिखरपर विराजमान थी, और अन्य राजाओंकी लक्ष्मीका परिहास करती थी । निम्नलिखित श्लोकोंसे मालूम होता है कि अमोघवर्ष बड़े भारी प्रतापी वीर थे, वली थे, सोलंकी राजाओंके लिये वे प्रलयकालकी अग्निके समान थे, अन्य शत्रुओंकी स्त्रियोंको वैधन्यकी दीक्षा देनेवाले थे, उनकी सेना इतनी अधिक थी कि उसके भारसे शेषनाग दवा जाता था। उन्होंने वेंगीमें किसी चालुक्यराजाको मार करके उसके अपूर्व सुस्वादु खाद्यसे यमराजको सन्तुष्ट किया था। शत्रुओंको उनके मारे कहीं भी ठहरनेका अवकाश नहीं मिलता था, उनका निर्मल यश सब ओर फैल रहा था, और उनकी राजधानीका
१. अमोघवर्षका पुत्र अकालवर्ष उसका जगत्तुंग (दुसरा) और उसका अमोघवर्ष द्वितीय । इस अमोघवर्षके तीन पुत्र थे-१ कृष्ण, २ निरुपम . ३ खोटिंगदेव। . ..