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-अधिक साफ २ बतला रही है, क्या लाभ है ? यदि तू राहुके समान सबका सब काला होता, तो तेरा दोप किसीकी दृष्टिमें तो • नहीं आता - तुझे कोई टोकता तो नहीं? ऊंचा पद प्राप्त करके जो नीचताका कार्य करता है, उसको लक्ष्य करके यह अन्योक्ति कही गई है।
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लोकाधिपाः क्षितिजेो भुवि येन जातास्तस्मिन्विधौ सति हि सर्वजनप्रसिद्धे । शोच्यं तदेव यदमी स्पृहणीयवीर्यास्तेषां बुधाय वत किंकरतां प्रयान्ति ।। ९५ ।। जिस लोकप्रसिद्ध धर्मके सेवनसे राजादि पुरुष लोकके स्वामी होते हैं उसके होते हुए जो बड़े २ पराक्रमी पंडित उन राजाओंके दास 'बनते हैं, उनकी दशा बड़ी शोचनीय है- उनपर बड़ा तरस आता है। अभिप्राय यह है कि, ये लोग धर्महीका सेवन क्यों नहीं करते हैं ? जिसके कि कारण राजादिकोंके सुख प्राप्त होते हैं ।
सत्यं वदात्र यदि जन्मनि बन्धुकृत्यमाप्तं त्वया किमपि वन्धुजनाद्धितार्थम् । एतावदेव परमस्ति मृतस्य पश्चात् संभूय कायमहितं तव भस्मयन्ति ॥ ८३ ॥ हे भाई ! यदि तूने अपने बन्धुजनोंसे इस जन्ममें कुछ वन्धुतारूप -लाभ उठाया हो तो, सच सच बता दे । हमको तो इनका इतना ही उपकार भासता है कि मरनेके पीछे ये सब इकट्ठे होकर तेरे अपकार करनेवाले शरीरको जला देते हैं ।