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( ७४ ) की जा सकती है, तो भी आदिपुराणके शेषभागके समान उसकी कविता भी अच्छी होगी । तंजौरके श्रीयुक्त कुप्पूस्वामीशास्त्रीने जीवंधरचरित्रको उत्तरपुराणसे जुदा निकालकर छपवाया है, उसे विद्वानोंने बहुत पसन्द किया है, इससे भी उत्तरपुराणके कवित्वकी उत्तमताका अनुमान होता है। उसमें तेईस तीर्थकरोंका और उनके तीर्थमें होनेवाले शलाकापुरुषोंका चरित्र है। जितनी संक्षेपतासे यह ग्रन्थ पूर्ण किया गया है, यदि उतनी संक्षे. पतासे नहीं किया जाता, आदिपुराणके समान विस्तारसे रचा जाता तो इससे कई गुना होता । पर जितना है, उतना भी कुछ थोड़ा नहीं है, आठ हजार श्लोकोंमें है। __ आत्मानुशासन-यह २७२ पोंका छोटासा, परन्तु बहुत ही उत्तम ग्रन्थ है । इसकी रचना कब हुई है ? इसके जाननेका कोई साधन नहीं है । क्योंकि इसके अन्तमें सिवा निम्नलिखित श्लोकके जिसमें कि ग्रन्थकर्ताका और उसके गुरुका उल्लेख है और कुछ भी नहीं लिखा है
जिनसेनाचार्यपादस्मरणाधीनचेतसाम् ।
गुणभद्रभदन्तानां कृतिरात्मानुशासनम् ।। तो भी ऐसा अनुमान होता है कि, यह महापुराणका शेष भाग पूर्ण करनेके पहिले बनाया गया होगा। क्योंकि इस ग्रन्थकी भाषा: टीकाके प्रारंभमें जो कि स्वर्गीय पं० टोडरमल्लजीकी बनाई हुई है, किसी संस्कृतटीकाके आधारसे लिखा है कि " यह आत्मा-. नुशासन गुणभद्रस्वामीने लोकसेन मुनिके सम्बोधनके लिये बनाया