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(६७) टीकासहित छप गया है । इसलिये जिन भाइयोंको संस्कृतका ज्ञान है अथवा मराठीका परिचय है, उन्हें इसकी मधुर और सरस क'विताका आस्वादन अवश्य करना चाहिये। .. इस १२ हजार श्लोकोंके बड़े भारी ग्रन्थमेंसे भिन्न २ रुचिके पाठकोंको अच्छे लगें, ऐसे दश पांच श्लोक नहीं चुने जा सकते हैं, तो भी हम अपने स्वाध्यायके समय नोट किये हुए कुछ श्लोकोंको यहां भावार्थसहित प्रकाशित कर देते हैं । वे सबको नहीं, तो हमारीसी रुचिवाले पाठकोंको अवश्य प्यारे लगेंगे- . . "चक्रवर्ती के दीक्षा लेनानेपर लक्ष्मीमती रानीके भेजे हुए दूत वज्रजंघ महारानके पास आकाशमार्गसे जा रहे हैं। देखिये, उस समयका कविने कैसा अच्छा प्राकृतिक चित्र खींचा है:
क्वचिज्जलधरांस्तुङ्गान्स्वमार्गपरिरोधिनः । विभिन्दन्तौ पयोविन्दून्क्षरतोऽश्रुलवानिव ॥ १०० ॥ , तौ पश्यन्तौ नदी दूरांत्तन्वीरत्यन्तपाण्डुराः ।
धनागमस्य कान्तस्य विरहेणेव कर्शिताः ॥ १०१॥ मन्वानों दूरभावेन पारिमाण्डल्यमागतान् । भूमाविव निमग्नाङ्गानक्कतापभयागिरीन् ॥ १०२ ॥ दीर्घिकाम्भो भुवोन्यस्तमिवैकमतिवर्तुलम् । . तिलकं दूरताहेतोः प्रेक्षमाणावनुक्षणम् ॥१०३॥ [ पर्व ८]
कहीं २ वे दूत अपने मार्गको रोकनेवाले बड़े २ मेघोंको भेदते हुए जाते हैं। उस समय उनमेंसे जो पानीकी बूंदें झरती हैं, वे उनके आंसुओं ‘सरीखी जान पड़ती हैं। नीचेकी नदी बहुत ऊंचाईके कारण उन्हें पतली