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(६२) नामक कविकी प्रशंसा की है, जिसने किसी कथाग्रन्यकी रचना की है। ___ आदिपुराण जैनसाहित्यका एक परमोत्तम ग्रन्थ है । यह केवल पुराण ही नहीं है। इसमें कविने अपने रचनाकौशलसे जैनियोंके कथा, चरित्र, भूगोल और द्रव्य इन चारों ही अनुयोंगोके विषयोंको संग्रह कर दिये हैं। जैनधर्मके जितने मान्य तत्त्व हैं, प्रायः वे सब ही इसमें कहीं न कहीं कथाका सम्बन्ध मिलाकर किसी न किसी रूप कह दिये गये हैं। इसकी प्रमाणता भी बहुत है । पीछेके ग्रन्थकारोंने इस ग्रन्थके प्रमाण 'आप' कहकर बड़े आदरके साथ उद्धृत किये हैं। पौरा'णिकोंके सिवाय कवियोंमें भी इसका बड़ा आदर है। वे इसे एक अद्वितीय महाकाव्य समझते आ रहे हैं । और है भी यह ऐसा ही । महाकाव्यके सारे लक्षण इसमें मिलते हैं । यह शृंगारादि " नवों रसोंसे ओतप्रोत भरा हुआ है । इसकी कविता वहुत ऊंचे दर्जेकी है । पदलालित्य, अर्थसौष्टव, सरलता, गंभीरता, कोमलता आदि कविताके समस्त गुणोंसे वह परिपूर्ण है। प्राकृतिक दृश्योंके तथा मानसिक विचारोंके भी इसमें अच्छे चित्र खींचे हैं । वह न केवल पाठकोंके मनोरंजनकी ही शक्ति रखती है, किन्तु मनोरंजनपूर्वक सुखका मार्ग दिखाती है और संसारके कष्टोंसे छूटनेके लिये उत्साहित करती है । यदि वर्तमान रुचिके पाठकोंको प्रसन्न न कर सकनेका इस ग्रन्थमें कुछ दोष है, तो वह यही कि, इसकी कविता शृंगारादि रसोंमें तन्मय करके भी उसमें स्थिर नहीं रहने देती हैकुछ ही समझ पीछे उन रसोंमें विरसताका भान करा देती है। पर