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भोजके समय
है, वह लामाजका समय
(५६) यह मत अब प्रायः सर्वमान्य हो गया है कि, शाकुन्तल, कुमारसंभव, मेघदूत, रघुवंश आदि सुप्रसिद्ध और मनोहर काव्योंका रचयिता कालिदास विक्रमादित्यके समयमें हो गया है, और विक्र. मादित्य जिनसेनस्वामीसे लगभग ९०० वर्ष पहिले हो गये हैं। एक कालिदासकी संभावना धाराधीश महाराज भोजके समयमें . भी की जाती है, परन्तु भोजका समय भी जिनसेनस्वामीसे नहीं मिलता है, वह लगभग दो सौ वर्ष पीछे चला जाता है । इसलिये इस दूसरे कालिदासका भी जिनसेनस्वामीसे साक्षात् होना संभव नहीं । हो सकता है।
महाकवि कालिदास जिनसेनस्वामीसे वहुत पहिले हो गये हैं, इसके लिये एक बहुत अच्छा प्रमाण वीजापुर जिलेके आयहोली ग्रामके मेगूती नामक जैनमंदिरका शिलालेख है, जो रविकीर्ति नामके जैनविद्वानका लिखा हुआ है । इस लेखमें पहिले महापराक्रमी राजा हर्षको परास्त करनेवाले चौलुक्यवंशीय महाराजः सत्याश्रय पुलकेशीकी बहुतसी प्रशंसा करके अन्तमें लिखा है कि,--
यस्याम्बुधित्रयनिवारितशासनस्य _ सत्याश्रयस्य परमाप्तवता प्रसादम् । शैलं जिनेन्द्रभवनं भवनं माहिम्नाम्
निम्मापितं मतिमता रविकिर्तिनेदम् ॥
१. परमारराजाओंके लेखोंसे सिद्ध हुआ है कि, राजाभोजकी मृत्यु वि. सं. १११२ के लगभग हुई थी, और १११५ में उदयादित्य नामक राजा धाराके सिंहासनपर बैठा था।