________________
(५५) " पुरातनकृतिस्तेयात्काव्यं रम्यमभूदिदम् " अर्थात् " यह कान्य एक पुराने ग्रन्थसे चुराया गया है, इसलिये इसमें सुन्दरता आ गई है । " जिनसेनके इन शब्दोंको सुनकर कालिदासको वहुत क्रोध आया । वे वोले:
. " पठतात्कृतिरस्ति चेत् " अर्थात् " यदि कोई पुराना ग्रन्थ है जिसमेंसे कि मैंने मेघदूत चुराया है, तो पढ़ करके सुनाओ । " जिनसेनने कहा, " ग्रन्थ है तो, परन्तु यहांसे बहुत दूरीपर एक नगरमें है, इसलिये मैं वहांसे आठ दिनके भीतर लाकर फिर सभामें पढ़कर सुनाऊंगा ।" यह सुनकर सभापति महाराजने कहा, "अच्छा ठीक है । आजसे आठवें राज वह अन्य लाकर सुनाया जावे" और समा विसर्जन कर दी। इसके पश्चात् अपने स्थानपर आकर महाकवि जिनसेनने पाम्युिदय काव्यकी रचना करना शुरू की और उसे एक सप्ताहमें पूर्ण करके आठवें रोज राजसभा पहुचकर सुना दी । अन्तमें कालिदासको लज्जित तथा गर्वगलित करके स्वामीने यह भी प्रगट कर दिया कि, वास्तवमें कालिदासका कान्य स्वतंत्र है, मैंने केवल इन्हें लज्जित करनेके अभिप्रायसे यह मेघदृतवेष्टित पाश्र्वाभ्युदय बनाया है !"
इसमें जो कालिदासका सम्बन्ध वतलाया है, उससे इस कथाके सत्य होनेमें सन्देह होता है। क्योंकि शककी आठवीं शताब्दिमें 'कालिदासनामका कोई भी कवि नहीं हुआ है और यदि हुआ भी हो, तो वह मेघदूतका कर्त्ता तो कदापि नहीं होगा। क्योंकि