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(३९) सिद्धान्तमन्दिरमें उसकी एक प्रति है, और जिनेन्द्रगुणस्तुति तथा वर्द्धमानपुराणनामके दो ग्रन्थोंका पता हरिवंशपुराणकी प्रस्तावनासे लगता है, जिसका उल्लेख पहले किया जा चुका है, परन्तु अभीतक इन ग्रन्योंका अस्तित्व कहींपर सुननेमें नहीं आया है। शायद किसीको यह ज्ञात भी नहीं है कि, जिनसेनस्वामीके बनाये हुए चर्द्धमानपुराण तथा जिनेन्द्रगुणस्तुति नामके भी कोई ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्योंके सिवाय सुप्रसिद्ध हरिवंशपुराण भी जिनसेनस्वामीका बनाया हुआ कहलाता है। बल्कि प्रोफेसर के. वी. पाठक, श्रीयुक्त टी. एस. कुप्पूस्वामी शास्त्री आदि कई विद्वानोंने इस विषयका कई स्थानोंमें उल्लेख भी किया है । इस लेखके लिखनेका प्रारंभ करने तक इस निवन्धलेखकका भी यही ख्याल था कि, हरिवंशपुराण और आदिपुराणके कर्ता जिनसेन एक ही हैं। परन्तु पीछे विचार. करनेसे अच्छीतरह निश्चय हो गया कि, आदिपुराणके कर्ता जिनसेनसे हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेन जुदे थे। पटकोंके विश्वासके लिये इस विषयमें हम यहांपर थोड़ेसे प्रमाण देते हैं:
१ आदिपुराणके कर्ता जिनसेनके विद्यागुरुका नाम वीरसेन और दीक्षागुरुका नाम जयसेन था, ऐसा ऊपर आदिपुराण, पार्थाभ्युदय, उत्तरपुराण, श्रुतावतार, दर्शनसार अदि कई अन्योंके आधारसे प्रगट किया जा चुका है, परन्तु हरिवंशपुराणके कर्ता अपने गुरुका नाम कीर्तिसेन लिखते हैं। . २ आदिपुराणकारने अपने संघका नाम सेन लिखा है, परन्तु गण नहीं बतलाया । हरिवंशकेकर्ता संवआदि कुछ भी नहीं लिखकर