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इस भरतक्षेत्र के सुरम्य नामक देशमें एक पोदनपुरी नामकी नगरी थी, जिसमें अरविंद नामक राजा राज्य करता था । राजाके मंत्री विश्वभूतिके कमठ और मरुभूति नामके दो पुत्र थे । अवस्था प्राप्त होनेपर इन दोनोंको मंत्रीका पद प्राप्त हुआ और क्रमसे वरुणा और वसुंधरा नामकी सुन्दर कन्याओंके -साथ इन दोनोंका विवाह हो गया । एक वार अरविन्द्रमहा- राज मरुभूतिको अपने साथ लेकर वज्रवीर्य नामक राजाको जीतनेके लिये उसकी राजधानीपर चढ़ गये । इधर कमठका मन मरुभूतिकी स्त्री वसुन्धरापर आसक्त हो रहा था, सो उसने अवसर याकर अपनी स्त्री वरुणाके द्वारा वसुन्धराको एकान्तमें प्राप्त करके नाना प्रकार के कामकौशलोंसे वशमें कर ली और उसका शील नष्ट कर दिया । परन्तु यह वात छुपी नहीं रही । अरविन्द महाराजको - लौटकर अपनी राजधानीमें प्रवेश करनेके पहिले ही इसका पता लग गया, इसलिये उन्होंने मरुभूतिसे पूछा कि, भाईकी खीके साथ पतित होनेवालेको क्या दंड देना चाहिये ? और उसने जो उत्तर दिया उसीके अनुसार कमठको यह आज्ञा देकर नगरीस निकलवा दिया कि अब वह कभी मेरी दृष्टिके साम्हने न आवे । निदान कमठ मरुभूतिपर क्रुद्ध होकर घरसे निकल गया और वनमें तापसी होकर कायक्लेश करने लगा । मरुभूतिका हृदय बहुत कोमल था, इसलिये 'जब उसने घर आकर यह सुना कि, मेरा भाई देशसे निकाल दिया गया है, तब बहुत दुःखी हुआ और पश्चात्ताप करता हुआ
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कमठके पास पहुंचा । वहां उसका क्रोध शान्त करनके लिये
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