________________
(५०) प्रो० के० वी० पाठक ऐसे ही निप्पक्ष विद्वानों से एक हैं । उन्होंने रायल एशियाटिक सुसायटीम कुमारिलमह और भर्तृहरिके विषयमें जो निबंध पढ़ा था, उसम जिनसेनस्वामीके विषयमें देखिये क्या राय दी थी;--
जिनसेन lived on into the reign of Amogharrarsha, as he tells us himself in the पार्श्वभ्युदय. This poem is one of the curiosities of Sauskrit literature. It is atonce the product and the wirror of the literary taste of the age. The first place among Indian poets is alloted to कालिदास by consent of all. जिनसेन, however, claims to be considered a higher genius than the author of Cloud Messenger ( मेघदत ).
इसका अभिप्राय यह है कि, "जिनसेन अमोघवर्ष (प्रथम) के राज्य कालमें हुए हैं जैसा कि उन्होंने पार्वाभ्युदयमें कहा है। पाश्र्वाभ्युदय संस्कृत साहित्यमें एक कौतुकजनक उत्कृष्ट रचना है । यह उस समयके साहित्य स्वादका उत्पादक और दर्पणरूप अनुपम काव्य है । यद्यपि सर्वसाधारणकी सम्मतिसे भारतीय कवियाम कालिदासको पहिला स्थान दिया गया है, तथापि जिनसेन मेघदूतके कर्ताकी अपेक्षा अधिकतर योग्य समझे जानेके अधिकारी हैं।"
पार्श्वभ्युदयकी कविताका इस लेखके पाठक भी थोड़ा बहुत रसास्वादन कर सकें, इसलिये हम यहांपर थोडेसे पद्य भावार्थसहित उद्धृत किये देते हैं:
कल्लोलान्तर्बलिनशिशिरः शीकरासारवाही धूतोद्यानो मदमधुलिहां व्यञ्जयत्सिञ्जितानि