________________
( ४९ )
रचना कितना कठिन कार्य है, इसे काव्यरचनाके मर्मज्ञपाठक अच्छी तरहसे समझ सकते हैं । ऐसी रचनाओं में क्लिष्टता और निरसता आनेकी बहुत बड़ी संभावना है । परन्तु पार्श्वाभ्युदय क्लिष्टता और निरसताके दोषोंसे साफ वच गया है। आप इसके किसी भी ' श्लोकको पढ़ेंगे तो यह नहीं मालूम होगा कि, समस्यापूर्ति पढ़ रहे हैं । आपको एक नवीन ही 1 आस्वाद मिलेगा ।
हम किसी कान्यकी शैलीके काव्यका
केवल अपने अध्ययनके और अपनी जांचके भरोसे हमारा यह कहना तो बढ़े भारी साहसका कार्य होगा कि महाकवि जिनसेनकी कविता कविकुलगुरु कालिदासकी कविताके जोड़की है । परन्तु इतना कहे विना तो नहीं रहा जाता है कि, कालिदासके ग्रन्थोंका जितना अध्ययन, अध्यापन, आलोचन, और प्रत्यालोचन हुआ है उतना यदि जिनसेनके ग्रन्थोंका हो, तो इस कविश्रेष्ठका आसन संस्कृतसाहित्यमें आशासे भी अधिक ऊंचा हुए विना नहीं रहेगा । खेद इसी बात का है कि, धार्मिक पक्षपातके कारण अजैन विद्वानोंमें तो इन ग्रन्थोंका पठन पाठन नहीं रहा है और जैनियोंमें कोई विद्वान् नहीं है । जो थोड़े बहुत हैं, उनकी विद्या ऐसी निकम्मी और निर्वीर्य है कि, उसके द्वारा इन रत्नोंके गुण प्रगट होनेकी आशा ही नहीं की जा सकती है। तो भी क्या चिन्ता है - कालोह्ययं निरवधिर्विपुला च पृथ्वी । हमको विश्वास है कि कभी न कभी निष्पक्ष विद्वानोंके हाथमें जाकर जिनसेनके ग्रन्थ अपने यथार्थ गुणको प्रगट किये विना नहीं रहेंगे ।
1
A
४