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हे नाथ, कामवती स्त्रियोंके मनको हरण करनेवाली, नानारसमयी और जीमें समाई हुई आपकी मूर्तिको ज्यों ही मैं कामको पीडाको कम करनेके लिये चित्रपटपर लिखती है. और प्रीतिपूर्वक देखना चाहती हूं, त्यों ही वार २ बढ्नेवाले गरम गरम आसू मेरी दृष्टिको रोक देते हैं आपकी मूर्तिके दर्शन नहीं करने देते हैं।
तीव्रावस्थे तपति मदने पुष्पवामदङ्ग तल्पेऽनल्पं दहति च मुहुः पुप्पभेदः प्रक्लते। तीवापाया त्वदुपगमनं स्वममापि नापं "क्रूरस्तस्मिन्नपि न सहते सङ्गमं नो कृतान्तः।। ३५ वर्ग: हे नाथ, अतिशय तीन मदन अपने पुप्पवाणोंसे मेरे अंगोंको संतापित करता है और फूलोंसे रची हुई सेजपर भी मुझे वारंवार जलाता है | इससे अतिशय दुखी होकर मैं आपका समागम चाहती हूं। परन्तु स्वप्नमें भी आपका संगम नहीं होता है-निद्रा ही नहीं आती है। हाय ! यह निर्दय देव प्रत्यक्षकी तो कौन कहे, स्वप्नमें भी हमारे संयोगको सहन नहीं करता है।
वित्तानिन्नः स्मरपरवशां वल्लभां कांचिदेकां ध्यानव्याजात्स्मरति रमणी कामुको नूनमेषः । अज्ञातं वा स्मरति सुदती या मया पिताऽसी
"त्तां चावश्यं दिवसगणनातत्परामेकपत्नीम्॥" ३३ शम्बर- देव पार्श्वनाथस्वामीको ध्यानस्थ देखकर कहता हैया तो यह निर्धन कामी ध्यानके वहानेसे अपनी किसी प्यारी सुन्दरी और कामके वशमें पड़ी हुई स्त्रीका स्मरण करता है अथवा