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( ४६ ) द्रोपदीप्रबंध आदि दो चार ग्रन्थ और भी जिनसेनाचार्यके नामसे प्रसिद्ध हैं । परन्तु जब तक स्वतः अच्छी तरहसे न देख लिये जावें तब तक यह कहना कठिन है कि, वे वास्तवमें किसके बनाये हुए हैं। क्योंकि जिनसेन नामके और भी अनेक विद्वान् आचार्य हो गये हैं।
उपर्युक्त पांच ग्रन्थों से इस समय पार्थाभ्युदय और आदिपुराण ये दो ही ग्रन्थ प्रसिद्ध और प्राप्य हैं, इसलिये हम अपने पाठकोंको यहांपर उन्हींका थोडासा परिचय करा देना चाहते हैं। ___ पार्थाभ्युदय-यह ३६४ मन्दाक्रान्ता वृत्तोंका एक खंडकाव्य है । संस्कृत साहित्यमें अपने ढंगका यह एक ही काव्य है। इसमें महाकवि कालिदासका सुप्रसिद्ध काव्य मेघदूत सवका सन वेष्टित है । मेघदूत काव्यमें जितने श्लोक हैं, और उन श्लोकोंके जितने चरण हैं, वे सब एक २ वा दो २ करके इसके प्रत्येक:श्लोकमें प्रविष्ट कर लिये गये हैं, अर्थात् मेघदूतके प्रत्येक चरणकी समस्यापूर्ति करके यह कौतुकावह ग्रन्थ रचा गया है। संस्कृतमे मेघदतके श्लोकोंका अन्तिम चरण ले लेकर तो अनेक ग्रन्थ रचे गये हैं-जैसे नेमिदूत, शीलदूत, हसपादाङ्कदृत आदि । परन्तु सम्पूर्ण ग्रन्थको वेष्टित करनेवाला यह एक ही कान्य है । जिस कथाको लेकर इस अपूर्व ग्रन्थकी रचना हुई है, उसका सार भाग इस प्रकार है:
१. यह दि. जैनकवि विक्रमका बनाया हुआ है । इसमें राजीमती और नेमिनाथका चरित्र वर्णित है । छप चुका है। २. यह श्वेताम्बर जैन कवि चारित्र सुन्दर गणिका वनाया हुआ है। इसमें स्थूलभद्राचार्यका चरित्र है. । छपचुका है।