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(४२) और जिसमें विजयकीर्तिके शिष्य अर्ककीर्ति मुनिको शिलाग्रामके जिनेन्द्रमन्दिरको शकसंवत् ७३९ में पांच ग्राम देनेका जिकर है, उसमें--. 'श्रीयापनीयनन्दिसंघपुंनागक्षमूलगणे श्रीकीाचार्यान्वये ऐसा पद दिया हुआ है। इससे ऐसा भी जान पड़ता है कि, पुनाट वा 'नागगण उस यापनीय संघका एक गण है, जिसकी गणना जैनाभासोंमें की जाती है । जो हो इस विषयमें हम फिर कभी वि-- चार करेंगे, यहां केवल इतना ही सिद्ध करना है कि, हरिवंशपुराणके कर्ता पुन्नागगणके थे और इसलिये वे सेनसंघी जिनसेनसे पृथक् थे।
३ हरिवंशपुराणके प्रारंभमें ग्रन्थकर्त्ताने जिनसेन और उनके गुरु विनयसेनकी प्रशंसा की है। इससे अच्छी तरह स्पष्ट हो रहा है. कि, प्रशंसा करनेवाले ग्रन्थकर्तासे, प्रशंसित जिनसेन दूसरे हैं। . ___४ हरिवंशपुराणमें नेमिनाथ भगवानका जन्म सौरीपरमें लिखा है
और उत्तरपुराणमें द्वारिकामें लिखा है। इसके सिवाय हरिवंश और उत्तरपुराणके कथाभागमें और भी कई एक भेद हैं । इससे भी जान पड़ता है कि, आदिपुराणके कर्तासे हरिवंशके कर्ता पृथक् हैं। क्योंकि उत्तरपुराण आदिपुराणके कर्ता जिनसेनके शिष्य गुणभद्रका बनाया हुआ है । यदि हरिवंशपुराणको गुणभद्रके गुरु जिनसेनने ही बनाया होता, तो गुणभद्रस्वामी अपने गुरुके लिखे हुए कथाभागसे विरुद्ध कुछ भी नहीं लिखते, यह निश्चय है। हरिवंशके कर्ता दूसरे संघके थे और उत्तरपुराणके को दूसरे संघके थे; इसीलिये कथाभागमें दोनोंका मतभेद दिखलाई देता है। . .. हरिवंशपुराण और आदिपुराणका बहुत विचारपूर्वक स्वाध्याय करनेसे भी अच्छी तरहसे समझमें आता है कि, इनके रचयिता