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(२८) जिनसेनके पहले जो वीरसेनगुरुकी प्रशंसा की गई है, उससे स्पष्ट हो रहा है कि, वीरसेनके पश्चात् जो जिनसेनका उल्लेख है, वह वीरसेनके शिप्य जिनसेनका ही है । इसके सिवाय वीरसेनको जो कवीनां चक्रवर्तिनः विशेपण दिया गया है, उससे यह भी विदित होता है कि ये वीरसेन भी आदिपुराणकर्तीके गुरुसे कोई मिन्न नहीं हैं। क्योंकि आदिपुराणके प्रारंभमें जो उनकी स्तुति की गई है, उसमें भी कवितृन्दारको मुनिः (देखो पृष्ठ १२ पंक्ति २) आदि विशेषण दिये गये हैं, जिनसे उनका श्रेष्ठ कवि होना सिद्ध होता है।
और आदिपुराणके कर्ताके समान हरिवंशके कर्त्ताने उन्हें सिद्धान्तशास्त्रोंकी टीका रचनेवाला नहीं कहा है। क्योंकि हरिवंशकी रचनाके समय उन्होंने टीकाएं नहीं बनाई थीं, कवित्वमें ही उनकी श्रेष्ठता थी। इससे सिद्ध है कि, हरिवंशमें जिन जिनसेनकी स्तुति की गई है, वे हमारे चरित्रनायक ही हैं। ___ भगवज्जिनसेनका जन्म कब हुआ होगा, इसका विचार किया जा चुका । अब यह देखना है कि, उनका स्वर्गवास कब हुआ होगा । यद्यपि इसके लिये कहीं किसी निश्चित तिथिका उल्लेख नहीं मिलता है परन्तु अनुमानसे जान पड़ता है कि लगभग शकसंवत् ७७० (वि० सं० ९०५) तक वे इस संसारमें रहे होंगे । क्योंकि वीरसेनस्वामीने जो सिद्धान्तशास्त्रकी वीरसेनीया नामकी टीका बनाई है, उसका शेष भाग जिनसेनस्वामीने शकसंवत् ७५९ में समाप्त किया है, ऐसा जयधवला टीकाकी प्रशस्तिसे . मालूम पड़ता है। देखिये: