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इसके जाननेका कोई साधन नहीं है कि, महापुराण किस समय प्रारंभ किया गया और उसका उत्तरभाग गुणभद्राचार्यने किस समय लिखना शुरू किया। केवल उत्तरपुराणकी समाप्तिका समय उसकी अन्त प्रशस्तिसे मालूम होता है:
शकनृपकालाभ्यन्तरविंशत्यधिकाष्टशतमिताब्दान्ते । मङ्गलमहार्थकारिणि पिङ्गलनामनि समस्तजनमुखद॥३२॥ श्रीपञ्चम्या बुधा युजि दिवसवरे मंत्रिवारे सुधांशौ । पूर्वायां सिंहलग्ने धनुपि धरणिजे वृश्चिकाकी तुलागौ । सूर्ये शुके कुलीरे गवि च सुरगुरौ निष्ठितं भन्यवयः ।। प्राप्लेज्यं सर्वसारं जगति विजयते पुण्यमेतत्पुराणम् ॥३३॥
इसका अभिप्राय यह है कि, शकसंवत् ८२० में यह महापुराण समाप्त हुआ । महापुराणके शेप भागके जिसको कि गुणभद्रस्वामीने पूर्ण किया है, दश हजार श्लोक हैं। यदि गुणभद्रस्वामी इसे लगातार वनाते गये हों, और दश दश पांच पांच श्लोक ही इसके प्रतिदिन बनाते रहे हों, तो दश हजार श्लोकोंकी रचनाके लिये पांच वर्ष समझ लेना काफी है । अर्थात् उत्तरपुराणका प्रारंभ शकसंवत् ८९५ के लगभग हुआ होगा, ऐसा अनुमान कर सकते हैं । परन्तु इससे यह समझ लेना हमारी भूल होगी कि, जिनसेनन्वामीका ८१५ के लगभग देहान्त हुआ होगा । क्योंकि इस कालमें १४० वर्षकी आयु होना एक प्रकारसे असंभव है। इससे जान पड़ता है कि, जिनसेनस्वामीका शरीरान्त होनेपर महापुराण बहुत वर्षों तक अधूरा पड़ा रहा है, और फिर गुणभद्रस्वामीने उसमें हाथ लगाया है । हम