________________
( १६ ) अर्थात् उन गुणभद्रसूरिके सम्पूर्ण शिष्योंमें लोकसेन नामके मुनश्विर मुख्य शिष्य हुए, जो कि कवि हैं और सकल चारित्रके पालन करनेवाले हैं, तथा इस पुराणके रचनेमें गुरुविनयरूप बड़ी भारी सहायता देकर जो विद्वानोंके द्वारा मान्य हुए हैं। मंडलपुरुपने अपने कोशमें स्वयं लिखा है कि, गुणभद्रस्वामी मेरे गुरु हैं। क्षत्रचूडामणिकी प्रस्तावनामें श्रीयुक्त कुप्पूस्वामी शास्त्रीने मंडलपुरुषकृत चूडामणिनिघंटुकी प्रशस्ति उद्धृत की है, परन्तु द्राविड़ भाषाका ज्ञान नहीं होनेसे हम उसे प्रकाशित नहीं कर सके ।
इस तरह हमारे चरित्रनायकोंके वंशवृक्षका निम्नलिखित रूप होता है:
एलाचार्य वीरसेन
विनयसेन जिनसेन दशरथगुरु श्रीपाल (सशंकित) कुमारसेन (काष्ठासंघी)।
अमोघवर्ष महाराज
गुणभद्र
लोकसेन मंडलपुरुष 1. मंडलपुरुष यह नाम मुनि अथवा आचार्य सरीखा नहीं मालूम होता है । बहुत करके मंडलपुरुष विद्वान् गृहस्थ ही होंगे।
२. हो सकता है कि एलाचार्य सेनसंघके आचार्य न हों और वीरसेनस्वामी उनके समीप सिद्धान्त पढ़ने गये हों तथा वीरसेनस्वामीके दीक्षागुरु कोई दूसरे ही आचार्य हों।