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कवि-प्रशंसा
१. जयन्ति ते सुकृतिनों, रससिद्धाः कवीश्वराः । नास्ति येषां यशः - काये, जरा-मरणजे भयम् ॥
-शाई गधर १६६ तथा भर्तृहरि-नौतिशतक २४ धे पुण्यशाली एवं रससिद्ध कविराज विश्व में विजयी होते हैं, जिनके मश:रूप शरीर को कभी जरा-मरण का भय नही है । अपारे काव्यसंसारे, कविरेकः प्रजापतिः । यथास्मै रोचते विश्व, तथेदं परिवर्तते 11
उत्तर-रामचरित उदाहारः पृ. ६ इस अपारकाव्य-संसार में कवि एक प्रजापति है। इसे जैसा रुचता है, संसार वैसा ही बन जाता है । कवयो ह्यर्थ विनापीश्वराः।
कवि लोग धन के बिना भी ईश्वर हैं। ४. सच्चा कवि बहुत कुछ पैगम्बर के समान है। ५. कवि आत्मा का चित्रकार है।
--- आइजक जिंजराइली ६. रामायण-महाभारत के रचयिता शब्द के चित्रकार नहीं थे, मानव-स्वभाव के चित्रकार थे ।
धी ७. कवि की अंगुलियों से शब्द चमक उठते हैं। - जोवर्ट
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