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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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उपरोक्त पाठ में स्पष्ट फरमाया गया है कि,
जिन तीन थोय से चैत्यवंदन करने का (नौ चैत्यवंदना के प्रकार में से) छठवां भेद है, वह चैत्यपरिपाटी में करने के लिए है। आदि पद से साधु के मृतक को परठवने के बाद जो चैत्यवंदना करनी होती है, उसमें करने के लिए है ।
इस प्रकार त्रिस्तुतिक मतवालों ने "निस्सकड०" इस बृहत्कल्प भाष्य की गाथा को आगे करके चौथी थोय एवं प्रतिक्रमण की आद्यंत की चैत्यवंदना की चौथी थोय का निषेध कर, तीन थोय की तथा प्रतिक्रमणकी आद्यंतकी चैत्यवंदना में तीन थोय की स्थापना करने के लिए जो प्रयत्न किया है, वह शास्त्र विरोधी सिद्ध होता है ।
चैत्यवंदन महाभाष्य की गाथा - १६३ में स्पष्ट कहा है कि, तीन थोय से जो चैत्यवंदना बताई गई है, वह चैत्यपरिपाटी में करनी है । प्रतिक्रमण की आद्यंतकी चैत्यवंदना में नहीं । इसलिए मुनिश्री जयानंदविजयजीने 'अंधकार से प्रकाश की ओर' पुस्तक के पृष्ठ- ८१-८२ पर जो प्रश्नोत्तरी रची है, वह शास्त्र विरोधी है । क्योंकि, 'निस्सकड० ' गाथागत तीन थोय की चैत्यवंदना चैत्यपरिपाटी में ही चैत्यवंदन महाभाष्यकारने विहित की है । परन्तु जिनमंदिरमें होनेवाली देववंदना में नहीं। क्योंकि, (ऊपर दर्शाए अनुसार ) चैत्यवंदन महाभाष्यकारने गाथा - १६१ में श्रावकों से उत्कृष्ट चैत्यवंदन ही करने की सिफारिश की है। तीन थोय के चैत्यवंदन की सिफारीश नहीं की है। साथ ही प्रतिक्रमण की आद्यंतकी चैत्यवंदना के अंदर भी तीन थोय की सिफारीश नहीं की है। पूर्व में बताए अनुसार तो भाष्यकार ने चार थोय से ही चैत्यवंदना विहित की है ।
पाठकों को याद रहे कि, त्रिस्तुतिक मत के लेखकों ने चैत्यवंदन महाभाष्य के पाठों की साक्षी की प्रत्येक स्थल पर उपेक्षा की है। कारण सहज समझा जा सकता है कि, अपनी मान्यतामें वह ग्रंथ अनुकूल नहीं आया । चैत्यवंदन