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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
प्रश्न : क्या अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिक्रमण की विधिमें प्रतिदिन श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करने को कहा गया है और उनकी स्तुति बोलने को कहा गया है ? और प्रतिदिन श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करने का उद्देश्य बताया गया है?
उत्तर : हां, अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिदिन श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग व उनकी थोय कहने को कहा गया है। कायोत्सर्ग का उद्देश्य भी बताया गया है, जो निम्नानुसार है।
अभिधान राजेन्द्रकोष, भाग-५, ५'कार विभाग, 'पडिक्कमण' विभागमें पृष्ठ-२६९ पर प्रतिक्रमण की विधि बताते हुए आगे कहा गया है कि,
“एवं चारित्राद्याचारणां शुद्धिं विधाय सकलधर्मानुष्ठानस्य श्रुतहेतुकत्वात्तस्य समृद्ध्यर्थम् - "सुअदेवयाए करेमि काउस्सग्गं अन्नत्थं" इत्यादि च पठित्वा श्रुताधिष्ठातृदेवतायाः स्मर्तुः कर्मक्षयहेतुत्वेन श्रुतदेवतायाः कायोत्सर्गं कुर्यात्, तत्र च नमस्कारं चिन्तयति । देवताधाराधनस्य स्वल्पयत्नसाध्यत्वेनाष्टोच्छ्वासमान एवायं कायोत्सर्ग इत्यादि हेतुः संभाव्यः । पारयित्वा च तस्याः स्तुतिं पठति सुअदेवया भगवई इत्यादि, अन्येन दीयमानां वा श्रृणोति।
एवं क्षेत्रदेवताया अपि स्मृतिर्युक्तेति तस्याः कायोत्सर्गानन्तरं तस्या एव स्तुति भणति । यच्च प्रत्यहं क्षेत्रदेवतायाः स्मरणं च, तत्तृतीये व्रतेऽभीक्ष्णावग्रहयाचनारुपभावनायाः सत्यापनार्थं संभाव्यते॥" ।
भावार्थ : इस प्रकार (चारित्रादि आचारोंकी शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करके चारित्रादि की शुद्धि करके सभी धर्मानुष्ठानों में श्रुतज्ञान कारण होने से (अर्थात् श्रुतज्ञान से ही सर्व धर्मानुष्ठानों का ज्ञान व उसमें प्राप्त करने के भाव और उनके आचरण से मिलनेवाले फल का ज्ञान होता है। इसलिए धर्मानुष्ठानों का कारण श्रुतज्ञान होने से) इस श्रुतज्ञान की समृद्धि प्राप्त करने हेतु 'मैं श्रुतदेवता का कायोत्सर्ग करता हूं।' इत्यादि बोलकर श्रुत के अधिष्ठातृ