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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
इस प्रकार पूर्वाचार्यकृत गाथाओं से प्रतिक्रमण की आद्यंतमें चैत्यवंदना होती है। इसलिए वह चार थोय से होती है।
यह वास्तविकता होने के बावजूद त्रिस्तुतिक मतवाले पूर्वाचार्यकृत गाथाओं के आधार पर प्रतिक्रमण की आद्यंतमें चैत्यवंदना करते हैं । परन्तु वह चार थोय से ही नहीं करते। यह सुविहित परम्परा के विरुद्ध है और जो सुविहित परम्परा से विरुद्ध हो, वह शास्त्रसापेक्ष नहीं ही होता है । सुविहित परम्परा शास्त्र सापेक्ष ही होती है । शास्त्रनिरपेक्ष नहीं होती । जो सुविहित परम्परा को न माने । वह परम्परा का विरोधी कहलाता है और इसीलिए शास्त्र निरपेक्ष कहलाता है ।
जो शास्त्रनिरपेक्ष हो वह उत्सूत्र कहलाता है । इस प्रकार त्रिस्तुतिक मत उत्सूत्र है ।
पूर्व में ठाणांग सूत्र की टीका के आधार पर कहा गया था कि, ज्ञानप्राप्तिज्ञानवृद्धि के सात उपाय है।
(१-५) पंचांगी, (६) परम्परा, (७) अनुभव।
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इस प्रकार परम्परा को मान्य करनेवाली ठाणांगसूत्र की वृत्ति ( टीका) है । टीका पंचांगी के अन्य चार अंगो से निरपेक्ष नहीं होती, सापेक्ष ही होती हैं । इसलिए पंचांगी को भी परम्परा मान्य है । अर्थात् परम्परा भी आराधनाके मार्ग जानने का उपाय है। जैसे पंचांगी से मोक्षमार्ग के उपाय जानने को मिलता है, वैसे ही परम्परा से भी मोक्षमार्ग के उपाय प्राप्त होते ही हैं ।
जो सुविहित परम्परा को न माने, वह ठाणांगसूत्र की वृत्ति को नहीं मानता, उसका विरोधी है इसलिए यावत् पंचांगी का विरोधी है, ऐसा समझें ।
(५) अभिधान राजेन्द्रकोषमें भाग - २ में पृष्ठ- २६७ पर 'पडिक्कमण' विभाग में प्रतिक्रमण की विधिकी चर्चा की गई है। इसमें सम्यग्दृष्टि देवताके