Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 193
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी पू.आ.भ.श्री जिनवल्लभसूरिजीने पौषध विधि प्रकरणमें लिखा है कि, रात्रि का पौषध किया हो तो पिछली रात उठकर प्रथम 'इरियावही' प्रतिक्रमण करके चार नवकार का कायोत्सर्ग करके ऊपर लोगस्स कहकर मुहपत्ति पडिलेहणा तथा नवकार जाप करके सामायिक करें। यहां मध्यस्थ भाव से विचार करें कि पौषध में तो विरति है, फिर भी श्री जिनवल्लभसूरिजीने इरियावही प्रतिक्रमण के बाद सामायिक लेने को कहा है। तो फिर गृहस्थ तो चंचल योग का धनी है। इसीलिए वह 'इरियावही' प्रतिक्रमण के बिना सामायिक करे तो सामायिक शुद्ध नहीं होता। जैसे स्नान करके ही पूजा करने का प्रचलन है और पूजा करके स्नान करने का काम कोई नहीं करता। वैसे ही इरियावही पापनाशक है, भावना जल है, इससे शुद्ध होकर सामायिक में प्रवृत्त हों तो ही सामायिक शुद्ध होता है । 'इरियावही' प्रतिक्रमण के बिना सामायिक शुद्ध नहीं होता। श्रीमहानिशीथ सूत्रमें कहे अनुसार सभी क्रियाएं 'इरियावही' प्रतिक्रमण के बाद ही करनी चाहिए । प्रतिपक्ष के लोग इससे विपरीत प्रथम सामायिक दंडक का उच्चरण करवाकर इरियावही 'प्रतिक्रमण' करते हैं, उनसे प्रश्न है कि, • पहले सामायिक दंडक उच्चारण कराने से पूर्व में 'इरियावही' प्रतिक्रमण करने से क्या दोष लगता है ? तथा आप (प्रथम) सामायिक लेते हैं, (इससे) सावद्ययोग से निवृत्त हुए हैं, अब इरियावहि प्रतिक्रमण करने से क्या अधिक करते हैं ? आप पोषह लेने से पहले 'इरियावही' प्रतिक्रमण करते हैं ? तथा साधु (आप के साधु) प्रतिक्रमण करने से पहले क्यों 'इरियावही' प्रतिक्रमण करते हैं ? और श्रावक (आपके श्रावक) क्यों प्रतिक्रमण नहीं करते?

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