Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 201
________________ २०० त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी गाथा-३२) इसीलिए वर्तमानमें त्रिस्तुतिक मतके अनुयायी अपनी मान्यताओं को आगमिक मत से अलग रखने की कोशिश करते हैं । इस प्रकार का मत मुनिश्री जयानंदविजयजी के तीनों पुस्तकों में कई जगहों पर देखने को मिलता है। यहां उल्लेखनीय बात यह है कि, त्रिस्तुतिक मत के अनुयायियों ने अपने मत के समर्थनमें व्यवहारभाष्य की 'तिन्निवा' गाथा एवं बृहद्कल्पभाष्य की 'निस्सकडम०' गाथा को प्रस्तुत किया है, उसी प्रकार आगमिक मतने अपने मतके समर्थन में ये गाथाएं कहीं भी प्रस्तुत नहीं की । पंचाशक ग्रंथ का पाठ भी कहीं प्रस्तुत नहीं किया । यह बात प्रवचन परीक्षा के सातवें विश्राम में देखी जा सकती है। प्रवचन परीक्षा के सातवें विश्रामकी १ से ३२ गाथा एवं उसकी टीका में स्पष्ट देखने को मिलता है कि, आगमिक मतने मात्र युक्तियों से ही अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। परन्तु इसमें भी उन्हें बिल्कुल विफलता ही मिली है। __ आगमिक मतकी इस विफलता को प्रत्यक्ष देखने के बाद हताश हुए वर्तमानकालीन त्रिस्तुतिक मत के अनुयायियों ने काफी पुरुषार्थ करके व्यवहारभाष्य-बृहत्कल्पभाष्य तथा पंचाशक आदि ग्रंथो के पाठ खोज निकाले हैं और आसपास के संदर्भो को देखे बिना स्वमत की पुष्टि के लिए जाहिर में तथा लिखितमें पेश कर दिए हैं । फिर भी उन्हें स्वमतकी शास्त्रीयता सिद्ध करने में सफलता नहीं मिली। पू.आत्मरामजी महाराजा आदिने पूर्वमें कहे अनुसार उनके मत की अशास्त्रीयताको लिखित में सिद्ध कर दिया है। इतनी चर्चा के बाद पाठक इस सत्य को अवश्य समझ सकेंगे। हां, कुछ दृष्टिरागी वर्ग उनकी बातोंमें फंसा है - यह जैनशासन के लिए एक गहरी चिंता का विषय है।

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