Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 200
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १९९ ___ तथा श्री गौतम महाराजा अपने पास केवलज्ञान न होने के बावजूद अपने शिष्यों को ( निमित्त कारण बनकर ) केवलज्ञान देते हैं। इस प्रकार श्रुतदेवता के पास भवविरह न होने के बावजूद भी वस्तु का उस प्रकार का स्वभाव होने से मोक्ष के कारणभूत ज्ञानादि को देकर मोक्षदाता भी बनते ही हैं। __श्रुतदेवता स्वयं को उद्देशित करके साधना करनेवाले साधक को निमित्त बनकर ज्ञान, दर्शन व चारित्र देते हैं, ऐसा शास्त्रोंमें अनेक जगह उल्लेख देखने को मिलता है। अर्थात् श्रुतदेवता ज्ञानादि प्रदान करते हैं । ज्ञानादि मोक्षांग है। मोक्ष तथा मोक्षांग के बीच कार्य-कारणभाव है। इसलिए कारणमें कार्य के उपचार से श्रुतदेवता मोक्ष ही देते हैं। मोक्षांग का दान मोक्ष के लिए ही किया जाता है। इसलिए श्रुतदेवता मोक्ष देते हैं, ऐसा कहनेमें कोई दोष नहीं और इसीलिए श्रुतदेवता के पास भवविरह की मांग करना तनिक भी अयोग्य नहीं। प्रश्न :आपकी उपरोक्त बात का आधार क्या है? उत्तर : प्रवचन परीक्षा ग्रंथमें गाथा-९ में प्रश्नकार की बात शंका स्वरुप प्रस्तुत की गई है और गाथा-१०की टीकामें शंका का समाधान किया गया है। जिज्ञासुओंसे वहां देखने की सिफारिश। इसलिए जो कार्य करने में अरिहंत समर्थ न हों, वह कार्य श्री अरिहंत परमात्मा से कम सामार्थ्यवाले व्यक्ति भी कर सकते हैं। आगमिक मतकी बातों की अशास्त्रीयता एवं युक्तिबाह्यता को प्रवचन परीक्षामें सातवें विश्राम में गाथा-१ से ३३ में विस्तारसे बताया गया है । सत्यप्रेमी वर्ग से अवलोकन करने की विशेष सिफारिश है। विस्तार भय से यहां उसकी विस्तृत चर्चा नहीं की है। प्रवचन परीक्षा के ग्रंथकार ने अंतमें त्रिस्तुतिक मत को शास्त्रबाह्य' मत के रुपमें घोषित किया है। इतना ही नहीं, बल्कि पूनमिया तथा अंचल मत से भी अधिक शास्त्र-विरोधी मत के रुपमें घोषित किया है। (देखें

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