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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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क्षेत्रदेवता की स्तुति का निषेध करते समय कौन-कौन सी युक्तियां प्रस्तुत की हैं ?
उत्तर : आगमिक अर्थात् त्रिस्तुतिक मत की उत्पत्ति करनेवाले साधुओंने जो युक्तियां प्रस्तुत की हैं, उनकी नोट प्रवचन परीक्षा ग्रंथ में गाथा - ५ में दर्शायी गई है जो निम्नानुसार है......
तित्थयरो असमत्थो जेसुवि कज्जेसु तेसु को अण्णो । कि हुज्जावि समत्थो ? ता कह सुअदेवयवराई ? ॥ ५ ॥ भावार्थ : जो कार्य करने में स्वयं तीर्थंकर परमात्मा असमर्थ हों, वे कार्य करने में अन्य कौन समर्थ हो सकता है ? (नहीं ही हो सकता) तो फिर बेचारी श्रुतदेवी क्या करें। (इसलिए ज्ञानादि की प्राप्ति के लिए श्रुतदेवी से की जानेवाली प्रार्थना निरर्थक है ।)
प्रश्न : आगमिक मत द्वारा उपर जो युक्ति प्रस्तुत की गई है, उसका प्रवचन परीक्षामें प्रतिकार किया गया है या नहीं ?
उत्तर : हां, उपरोक्त युक्ति का प्रवचन परीक्षामें गाथा - ६ में युक्ति एवं उदाहरणों से प्रतिकार किया गया है, जो इस प्रकार है ।
इच्चाइ अजुत्तीहिं मूढो मूढाण चक्कवट्टिसमो । न मुणइ वत्थुसहावं दिणयरदीवाइआहरणा ॥६॥ भावार्थ : इत्यादि (उपरोक्त) युक्तियों से मूढ जीवोमें चक्रवर्ती समान महामूढ वस्तु के स्वभाव को नहीं जानता। (यहां वस्तुके भिन्न-भिन्न स्वभाव को जानने के लिए) सूर्य - दीपकका उदाहरण है।
टीकामें उपरोक्त गाथा के तात्पर्य को स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि, अंधकार का नाश करने में समर्थ सूर्य घर के तलघरमें प्रकाश नहीं फैला सकता। घर के तलघर को प्रकाशित करने के लिए दीपक ही समर्थ हो सकता है। अर्थात् सामर्थ्य से जो अधिक हो वह सभी स्थलों पर सभी कार्य करनेमें समर्थ हो, ऐसा कोई नियम नहीं है। इसलिए सूर्यदीपक के उदाहरण से सिद्ध होता है