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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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फल स्वरुप मोक्ष की मांग हो ही जाती है।
जैसे मुमुक्षु को दीक्षा लेनी हो तो वह गुरु भगवंत से ही मांगता है। अपने माता-पिता से नहीं मांगता। फिर भी माता पिता दीक्षा का मार्ग प्रशस्त कर देते हैं तब ही गुरु भगवंत दीक्षा दे सकते हैं। इसलिए माता-पिता से भी दीक्षा की मांग करके सहमति मांगनी चाहिए और सहमति मिले तब ही गुरु भगवंत से दीक्षा के मुख्य प्रतीक रजोहरण की मांग की जा सकती हैं।
इसी प्रकार ऊपर की बातको समझना है। इसलिए सम्यग्दृष्टि देव-देवीसे समाधि-बोधि, मोक्ष, कर्मक्षय आदि सभी मांगे की जा सकती है।
देव-देवीके समक्ष तीन ढगली व सिद्धशिला करें, खमासमणा देना वह अयोग्य ही है । यह करने के लिए कोई साधु-साध्वी उपदेश नहीं देते हैं। कोई देते हों तो वह गलत है ।
प्रश्न : चतुर्थ स्तुति की सिद्धि किस ग्रंथ में की गई है ? और किस लिए की गई है ?
उत्तर : चतुर्थ स्तुतिकी सिद्धि वादिवेताल पू.आ.भ. श्री शांतिसूरिजी कृत चैत्यवंदन महाभाष्य में गाथा-७७६ से ७८७ तक की गई है। यह निम्नानुसार है। चैत्यवंदन महाभाष्य में देव - देवी के कायोत्सर्ग तथा उनकी स्तुति की सिद्धि करते हुए कहते हैं कि,
वैयावच्चं जिणगिह- रक्खण-परिट्ठवणाइजिणकिच्चं । संती पडणीयकओ - वसग्गविनिवारणं भवणे ॥७७६ ॥
भावार्थ : जिनमंदिर की रक्षा करना, जिनमंदिर की प्रसिद्धि करना (अथवा जिनमंदिर की महिमा बढाना) आदि वैयावृत्त्य हैं। जिनमंदिर में शत्रुओं द्वारा किए जानेवालें उपद्रवों का निवारण करना शांति है। (७७६) सम्मद्दिट्टी संघो, तस्स समाही मणोदुहाभावो । एएसिं करणसीला, सुरवरसाहम्मिया जे उ ॥ ७७७৷ तेसिं संमाणत्थं, काउस्सग्गं करेमि एत्ताहे ।