Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 178
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १७७ विधान ध्यान में ही होंगें । महापुरुषों की प्रवृत्ति गंभीर आशयवाली होती है । वर्तमान में तो देव-देवी के पास भी मोक्षकी मांग करने की सिफारिश करने जैसी है। जो लोग श्री जिनेश्वर परमात्मा से भोगसुख मांग आएं ऐसे लोग देव-देवीसे भोगसुख मांगें, इसमें ग्रंथकारों अथवा सुविहित परम्परा को दोष देने जैसा नहीं है । उस जीव की परिणति व सुख जिसकी सन्मार्ग पर ले जाने की जिम्मेदारी है, उनकी 'संसार के लिए भी धर्म हो सकता है ।' ऐसी विपरीत प्ररूपणा जिम्मेदार है- दोषरुप है, किन्तु देव - देवी के कायोत्सर्गादिका विधान करनेवाले शास्त्रकार महर्षि जिम्मेदार नहीं । मुनिश्री जयानंदविजयजीने जीवानुशासन वृत्तिमें जिस बात की गंध भी नहीं, उस बात को उसी ग्रंथ के नाम से प्रचारित करके लोगों को उन्मार्ग पर प्रेरित करने का प्रयत्न किया है। मुनिश्री पृष्ठ- ११२ पर आगें लिखतें हैं कि, “अब आज के युगके धर्माचार्यो से लेकर सामान्य श्रावकश्राविका देव - देवियों के चरणों में झुक-झुककर मोक्ष मांग रहे है । समाधि और बोधि मांगना अर्थात् मोक्ष मांगना । समाधि बोधि के बिना मोक्ष मिलता ही नही। देव देवियों के सामने तीन ढगली और सिद्धशिला करनी अर्थात् मोक्ष मांगना ।" मुनिश्री इसमें क्या संकेत करना चाहते हैं, यह स्पष्ट नहीं होता । वंदित्तासूत्रकी ४७वीं गाथा में सम्यग्दृष्टि देवताओं से समाधि - बोधि मांगने की जो बात की है, वह उन्हें खटकती है। यह जीवानुशासन वृत्तिकी चर्चा करते हुए उन्होंने प्रकट की है। समाधि-बोधि के बिना मोक्ष नहीं मिलता । इसीलिए समाधि-बोधि मांगनेमें मोक्ष की मांग हो ही जाती है । विघ्नो का निवारण न हो तब तक समाधि प्राप्त नहीं होती। इसलिए विघ्नों का निवारण करने के साथ ही समाधि एवं उसके

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