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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी भाति यद्यप्यावश्यकचूर्णौ पच्छा इरिआवहीअए पडिक्कमइ इत्युक्तमस्ति परं तत्र साधुसमीपे सामायिककरणानंतरं चैत्यवंदनमपि प्रोक्तमस्ति ततः इर्यापथिकीप्रतिक्रमणं सामायिकसंबंधमेवेति कथं निश्चीयते तेन चूर्णिगत सामायिककरणसामाचारी सम्यक्तया नावगम्यते तदपि योगशास्त्रवृत्तिश्राद्धदिनकृत्यवृत्यादौ पश्चादीर्यापथिकीप्रतिक्रमणं निर्णीतं कथं भवतीति॥
भावानुवाद : (प्रश्न:-) सामायिक के अधिकार में प्रथम ‘इरियावहिया' करके 'करेमि भंते' की पट्टी (पाठ) कहना शास्त्रानुसार युक्त है कि प्रथम 'करेमिभंते' और बादमें इरियावही करना युक्त है?
उत्तर : सामायिक के अधिकारमें महानिशीथ, श्री हरिभद्रसूरिजी कृत दशवैकालिक सूत्र की बृहद्वृत्ति आदि के अनुसार तथा युक्ति अनुसार व सुविहित परम्परानुसार तो प्रथम इरियावही करना युक्त लगता है।
यद्यपि आवश्यक चूर्णिमें इरियावही बादमें करने को कहा हैं । परन्तु यहां साधु के पास सामायिक करने के बाद चैत्यवंदन भी करने को कहा गया है। इसलिए इरियापथिकी प्रतिक्रमण का सम्बंध सामायिक के साथ ही है। ऐसा कैसे जाना जा सकता है ? इसलिए चूर्णिगत सामायिक करने की सामाचारी सम्यक्तया दिखाई नहीं देती । (अर्थात् चूर्णिमें से समायिक की सामाचारी अच्छी तरह से नहीं समझी जा सकती।) ___यद्यपि योगशास्त्रवृत्ति, श्राद्धदिनकृत्य वृत्ति आदि में ('करेमिभंते' का उच्चारण कराने के बाद) 'इरियावही करने को कहा गया है, यह लेख भी चूर्णि के आधार पर है-चूर्णि पर आधारित है। इसलिए इन ग्रंथों से भी ‘इरियावही' के बादमें करना, यह निर्णय कैसे हो सकता है?
इसलिए महानिशीथ आदि ग्रंथोके आधार पर प्रथम ही इरियावही प्रतिक्रमण करें।
प्रश्न : किन शास्त्रों में पहले इर्यापथिकी' और बादमें करेमिभंते'