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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
मोक्षांग की मांग भी परम्परा से तो मोक्षकी ही मांग है। कारण में कार्य के उपचार से मोक्षांग की मांग भी मोक्ष की ही मांग है। यहां जो निषेध है, वह साक्षात् मोक्षकी मांग का है, नहीं की मोक्षांग की मांग का । (इस विषयकी चर्चा विशेष से एक प्रश्न के उत्तर में की है उसे देखने की सिफारिश।)
देव-देवी के पास मोक्ष नहीं होने कारण उनसे साक्षात् मोक्ष की मांग नहीं की जाती है। परन्तु देव-देवी मोक्ष के अंगो को प्राप्त कर चुके हैं और अन्य को मोक्ष के अंग प्रदान करने का उनमें सामर्थ्य भी है। इसलिए मोक्षांग समाधिबोधि अवश्य मांगी जा सकती है और उसे वे दे भी सकते है।
मोक्षांग की मांग मोक्ष की या कर्मनिर्जरा की विरोधी नहीं है। किन्तु मोक्ष प्राप्ति एवं कर्मनिर्जरा में सहायक है। इसलिए ऐसी मांग के समयमें प्रार्थक की भावधारा भी निर्मल होती है। इसमें भौतिक स्वार्थ न होने के कारण आशय में भी मलीनता नहीं होती। इसलिए वह भावानुष्ठान बनती है।
मुक्ति का साधक मुक्ति की साधना में उत्पन्न अवरोधकों दूर करने के लिए भौतिक पदार्थों की मांग करे, तो भी वह मांग भौतिक-संसार का अंग नहीं बनती, बल्कि मोक्षांग बनती है। • वस्तु स्थिति इस प्रकार होने के बावजूद.....
मुनिश्री जयानंदविजयजी पृष्ठ-११२ पर लिखते हैं कि,
"जीवानुशासन वृत्तिमें स्पष्ट शब्दोमें मोक्ष के लिए देव-देवीयों की पूजा का अशुभ कर्म बंध कारक बताया है।"
लेखकश्री की बात असत्य है, यह आगे के पाठ देखने से समझमें आएगा । वहां मोक्ष मांगना अयोग्य बताया गया है । मोक्ष मांगने से अशुभ कर्मबंध होता है ऐसा नहीं कहा गया है।
विशेष में इस ग्रंथ का अवलोकन करनेवाले स्तुतिकारोंने स्वरचित स्तुतियों में देव-देवी से कर्मक्षय तथा मोक्ष मांगा होगा, तब उन्हें इस ग्रंथके