Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 175
________________ १७४ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी कायोत्सर्ग करने से क्या लाभ होता है। यह बताया गया है। (यह पाठ चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग-१में दिया गया है।) इस प्रकार...... (१) प्रतिक्रमण की आद्यंतमें की जानेवाली चैत्यवंदना, (२) प्रतिक्रमणकी आद्यंतमें की जानेवाली चैत्यवंदना में कथित चतुर्थ स्तुति, (३) प्रतिक्रमणमें प्रतिदिन होनेवाले श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता के कायोत्सर्ग व उनकी थोय को अनेकविध शास्त्रों का समर्थन मिलता है। श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग पारकर उनकी स्तुति कहने की विधि देवसि प्रतिक्रमण की विधि (पूर्वमें दर्शाए अनुसार) पूर्वाचार्यकृत गाथा१५-१६में दर्शायी ही है। इससे मुनिश्री जयानंदविजयजी ने श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता के कायोत्सर्ग व उनकी स्तुति पर जो सवाल उठाए है, उसका खंडन हो जाता है। उपरोक्त जीवानुशासन वृत्ति में देव-देवी के कायोत्सर्ग आदि सम्बंधी सभी खुलासे स्पष्ट देखने को मिलते हैं । फिर भी लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी ने 'सत्य की खोज' पुस्तक के प्रश्न-३४९ के उत्तरमें पृष्ठ११०,१११,११२ पर कुतर्क करके ग्रंथकार परमर्षि की बात को काटने का प्रयत्न किया है। यह लेखकश्रीकी शास्त्र के प्रति उपेक्षित नीति है। कदाग्रह के कारण शास्त्रकार परमर्षियों की आशातना करने की भी तैयारी है। बात को सीधे तौर पर स्वीकार करने के बजाय वृत्ति (टीका) के कुछ शब्दों को पकडकर पूरी बात को दूसरी पटरी पर चढा दिया है। उनकी पुस्तक में एक ही सुर है कि, देव-देवी की पूजा का विरोध हुआ है और जिसका विरोध हुआ हो वह निर्विकल्प ढंग से स्वीकार नहीं किया जा सकता, जिसका विरोध हुआ हो वह विवादग्रस्त कहलाता है और इसलिए स्वीकार्य नहीं होती। लेखकश्री की यह बात बिल्कुल बेबुनियाद है।

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