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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
१७३ प्रतिदिन पूर्वाचार्यो कायोत्सर्ग करते आए हैं। इसलिए पूर्वोक्त देवताओं का नित्य कायोत्सर्ग किया जाता है। इति गाथार्थः॥
इस प्रकार सिद्ध होने के बावजूद पुनः क्या करना चाहिए, यह कहतें हैं। 'विग्घविघायणं' इत्यादि १००४ गाथा की व्याख्या।
विघ्नविघातके लिए उपसर्गके निवारक होने से तथा श्रीजिनमंदिरकी रक्षा करनेवाले होने से देवभवन का पालन करते होने से नित्य प्रतिदिन इन देवताओं की पूजा करनी चाहिए । अर्थात् दिन-प्रतिदिन इन देवताओं की पूजा करनी चाहिए । अर्थात् दिन-प्रतिदिन इन देवताओं का कायोत्सर्ग करना चाहिए। यहां अभिप्राय यह है कि, यदि कोई इन देवताओं की पूजादि मोक्ष के लिए करे तो वह अयोग्य है। परन्तु विघ्न निवारणादि के लिए करे तो कुछ भी अयोग्य नहीं । उचित प्रवृत्ति रुप होने से पूजा-कायोत्सर्ग करना योग्य ही है। किंच शब्द अभ्युच्चयार्थक है।
अभ्युच्चय शेष कहने योग्य जो रहता है, वही कहता है। 'मिच्छत्तगुण।' इत्यादि गाथा-१००५की व्याख्या।
मिथ्यात्वगुण सहित प्रथम गुणस्थानक में प्रवृत्त जो राजा है, उनकी जो नमस्कारादि पूजा करते थे, तो आलोक के प्रयोजन से करते थे। परन्तु सम्यक्त्व सहित सम्यग्दृष्टि ब्रह्मशांत्यादि देवताओं की पूजा, नमस्कार, कायोत्सर्गादि की जाती है। वह कोई अज्ञानी लोग नहीं करते। यह गाथार्थ है।
उपरोक्त जीवानुशासन ग्रंथ के साक्षी पाठ से सभी प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं । त्रिस्तुतिक मतवालों ने हजारों पूर्वाचार्यों द्वारा आचरित प्रवृत्ति पर उत्पन्न करी हुई सब शंकाओ के समाधान भी मिल जाते हैं। इसलिए सब सत्य का स्वीकार करें यही सिफारिश हैं । पूर्वधरों द्वारा आचरित आचरणा का कोई अनादर न करें यही सिफारिश। • पंचाशक प्रकरण में भी १९वें पंचाशक में सम्यग्दृष्टि देवताओं का