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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी स्मरणार्थ १२ वां अधिकार बताया गया है। (चैत्यवंदन भाष्य के आधार पर ।) संक्षिप्त में चैत्यवंदन भाष्य के आधार पर १२ अधिकारवाली चैत्यवंदना बताई गई है। (स्मरण रहे कि प्रतिक्रमण की प्रारम्भकी चैत्यवंदना करने समय यह बारह अधिकार बताए गए हैं।) अर्थात् चार थोय से चैत्यवंदना बताई गई है।
___ इसी विभागमें पृष्ठ-२६७ पर प्रतिक्रमण की विधिमें श्रुतदेवता का कायोत्सर्ग तथा उनकी स्तुति बोलने को भी कहा गया है।
इसके बाद तुरंत तीसरे व्रतकी रक्षा के लिए क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करने व उनकी थोय कहने को कहा गया है।
इस प्रकार अभिधान राजेन्द्रकोष जो, त्रिस्तुतिक मतवाले आ.श्री राजेन्द्रसूरिजी ने तैयार कराया है, उसमें भी(१) प्रतिक्रमण की आद्यंत में चार थोय की चैत्यवंदना बताई गई है और (२) श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग व उनकी थोय कहने को कहा गया है। (६) जानकारी के अनुसार आ.श्री राजेन्द्रसूरिजी अपना मत असत्य जानने के बाद तीन थोय के मत को त्याग करके चार थोय के मतको स्वीकार करने की भावना रखते थे। परन्तु किसी कारणवश वे ऐसा नहीं कर पाए होंगे ! इसलिए ऐसा लगता है कि, उन्होंने अभिधान राजेन्द्रकोष में प्रतिक्रमणकी विधिमें सत्य मत प्रकट किया होगा और अंत तक संभाला होगा।
पिछले कुछ समय का जैनशासन का इतिहास देखने पर ऐसा लगता है कि, उन्मार्ग स्थापकों से उनके अनुयायी दो कदम आगे बढ़ते हैं। यह कलिकालकी बलिहारी ही समझें। (७) उपरोक्त धर्मसंग्रह ग्रंथ के पाठमें (अर्थात् पूर्वाचार्यकृत गाथाओं में से गाथा-१५ व १६में श्रुतदेवता एवं क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करने को कहा गया है। वह भी प्रतिक्रमणमें प्रतिक्रमण के अंत में नहीं । साथ ही उनकी थोय कहने को भी कहा गया है।