Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 164
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १६३ प्रश्न : राई प्रतिक्रमण के अंतमें जो चार थोय की चैत्यवंदना की जाती है।वह किस आधार पर की गई है? उत्तर : राई प्रतिक्रमणके अंतमें चार थोय से चैत्यवंदना करने की विधि श्राद्धविधि ग्रंथमें बताई गई है। श्राद्धविधि ग्रंथमें द्वितीय रात्रिकृत्य प्रकाशमें राई प्रतिक्रमण की विधि बताते हुए कहा गया है कि, एवं ता देवसिअं, राइअमवि एवमेव नवरि तहिं। पढमं दाउं मिच्छामि दुक्कडं पढइ सक्कत्थयं ॥१९॥ -राई प्रतिक्रमण की विधि भी इसी प्रकार है। इसमें यही विशेष है कि, प्रथम मिच्छामि दुक्कडं देकर फिर शक्रस्तव कहें। (१९) उट्ठिअ करेइ विहिणा, उस्सग्गं, चिंतए अ उज्जोअं। बीअं दंसणसुद्धीइ, चिंतए तत्थ इममेव ॥२०॥ -उठकर यथाविधि कायोत्सर्ग करें तथा उसमें लोगस्स का मनन करें और दर्शनशुद्धि के लिए दूसरा कायोत्सर्ग करके उसमें भी लोगस्स का ही मनन करें। ___तइए निसाइआरं, जहक्कमं चिंतिउण पारेइ । सिद्धत्थयं पढित्ता, पमज्जसंडासमुवविसइ ॥२१॥ -तीसरे कायोत्सर्ग में रात्रि को हुए अतिचार क्रमशः स्मरण करें और फिर पारें। इसके बाद सिद्धस्तव कहकर संडासा प्रमाणित कर बैठें। (२१) ____पुव्वं च पुत्तिपेहणवंदणमालोअसुत्तपढणं च । वंदण खामण वंदण गाहातिगपढणमुस्सगो ॥२२॥ -पूर्व की भांति मुहपत्ति की पडिलेहणा, वंदना तथा लोगस्स सूत्र के पाठ तक करें। इसके बाद वंदना, खामणां, पुनः वंदना करके आयरिय' वाली तीन गाथा कहकर कायोत्सर्ग करें। (२२) तत्थ य चिंतइ संजमजोगाण न होइ जेण मे हाणी। तं पडिज्जामि तवं छम्मासं ता न काउमलं ॥२३॥ -इस कायोत्सर्ग में ऐसा मनन करें-कि 'जिसमें मेरे संयमयोगे की हानि न

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