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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी निरर्थिका तत्प्रार्थनेति ॥४७
भावार्थ : हे अर्हत् पाक्षिक सम्यग्दृष्टि देव ! मुझे (धर्म के विषयमें) चित्त की स्वस्थता रुपी समाधि एवं परभवमें जिनधर्म की प्राप्ति स्वरुप बोधि प्रदान करें। ___ शंका : ये देव समाधि देने में समर्थ हैं कि, असमर्थ हैं ? यदि असमर्थ हैं, तो उनसे की गई प्रार्थना व्यर्थ है और यदि समर्थ है, तो सभी भव्य जीवों को क्यों नहीं देते? अब यदि आप ऐसा मानते हैं कि, वे देव योग्य जीवों को ही समाधि देने के लिए समर्थ हैं, अयोग्य जीवो को नहीं। तो योग्यता को ही समाधि के लिए प्रमाणभूत मानें । बकरे के गले में निरर्थक स्तन (चमड़ी)की तरह निरर्थक देवों से क्या? अर्थात् उन निरर्थकदेवों से समाधि मांगने का कोई अर्थ नहीं।
समाधान : सभी जगह योग्यता ही प्रमाणभूत है । अर्थात् योग्यता ही मुख्य कारण है। परन्तु हम विचार करने के लिए असमर्थ नियतिवाद आदि की तरह एकांतवादि नहीं। अर्थात् एक ही अपेक्षा को पकडे रखने की (जगत नियति जन्य है, इस बात को पकडे रखने की) तथा अन्य अपेक्षा का विचार न करने की, नियतिवादी आदि जैसे एकांतवादी नहीं । परन्तु जिनमत के अनुयायी हैं । (अर्थात् आगम वचन तथा युक्ति से अयोग्य नियतिवादि आदि एकांतवादियों जैसे एकांतवादी नहीं । बल्कि जिनमत के अनुयायी हैं।) जिनमत सर्वनय का समूहरुप है, इसलिए जिनमत सर्वनय के समूहरुप स्याद्वाद का अतिक्रमण नहीं करता । अर्थात् हम जिनमतके अनुयायी होने से स्याद्वाद सिद्धांत का अनुसरण करनेवाले हैं।
इसीलिए स्याद्वाद सिद्धांत के अनुसार वस्तु में योग्यता होने के बावजूद निमित्तकारण की सामग्री मिले तो ही कार्य की उत्पत्ति होती है। जैसे घट बनाना हो तो मिट्टिमें घट बनने की योग्यता होने के बावजूद कुम्भार, चक्र, डोरी एवं दंड आदि सहयोगी कारण हैं । अर्थात् मिट्टीमें घट बनने की योग्यता होने का बावजूद घट बनाने के लिए चक्रादि सहयोगी कारण हैं। अर्थात्