________________
त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
फिर श्रुतसमृद्धि के लिए श्रुतदेवी का कायोत्सर्ग करें और उसमें नवकार का मनन करें । इसके बाद श्रुतदेवी की थोय सुनें अथवा स्वयं कहें । (१५ )
इसी प्रकार क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग करके उनकी थोय सुनें अथवा स्वयं कहें। फिर पंचमंगल कहकर संडासा प्रमार्जित करके नीचे बैठें | (१६)
१५८
इसके बाद पूर्वोक्त विधि से ही मुहपत्ति पडिलेहणा करके गुरु को वांदणा दें । इसके बाद 'इच्छामो अणुसट्ठि' कहकर घुटनों के बल बैठें। (१७)
वर्धमान अक्षर तथा (वर्धमान) स्वरवाली 'नमोऽस्तु वर्धमानाय' आदि तीन स्तुति उच्च स्वरमें कहें। इसके बाद नमुत्थुणं कहकर प्रायश्चित के लिए कायोत्सर्ग करें। (१८)
योगशास्त्र के अंतर्गत पूर्वाचार्यकृत गाथाओं के आधार पर उपरोक्त धर्मसंग्रह ग्रंथमें देवसि प्रतिक्रमण की विधि बताई गई है। इसमें
(१) प्रतिक्रमणके प्रारम्भमें चैत्यवंदन करने की विधि बताई गई है।
(२) चैत्यवंदन भी जावंति ०, जावंत०, ये दो गाथा, स्तवन, प्रणिधान छोड़कर शक्रस्तव पर्यंत चार थोय से करने को कहा गया है। अर्थात् चैत्यवंदना चार थोय से करने की कही गई है।
प्रश्न : आपने जो देवसि प्रतिक्रमण की विधि पूर्वाचार्यों की गाथाओं के आधार पर बताई है, उसमें दूसरी गाथामें तो ' वंदित्तु चेइयाई ' इस पद से चैत्यवंदन करने को ही कहा गया है। चार थोय से चैत्यवंदना को कहां कहा गया है ?
उत्तर : विधिप्रपा ग्रंथ में ' वंदित्तु चेइयाई' पद का तात्पर्य लिखा गया
है कि,
" सावओ गुरुहि समं इक्को जावंति चेइयाइं ति गहा दुगथुत्त