Book Title: Tristutik Mat Samiksha Prashnottari
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Nareshbhai Navsariwale

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Page 158
________________ त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी १५७ मुहपत्ति हाथ में रखकर घोडग आदि दोष टालकर काउस्सग्ग करें, उस समय पहना हुआ चोलपट्टा नाभि से नीचे और घुटने से चार अगुंली ऊंचा होना चाहिए। (३-४) कायोत्सर्ग करते हुए दिन में हुए अतिचार क्रमश: मनन करें। इसके बाद नवकार पूर्वक कायोत्सर्ग पारकर लोगस्स कहें। (५) संडासक पूंजकर नीचे बैठकर परस्पर छुएं नहीं इस प्रकार दोनों भुजाएं लंबी करके मुहपत्ति एवं काया की २५ - २५ पडिलेहणा करें । उठकर विनय से विधिपूर्वक गुरु को वंदन करें। इसमें बत्रीस दोष टालने और २५ आवश्यक की विशुद्धि का ध्यान रखें। इसके बाद सम्यक् प्रकार से शरीर नमाकर दोनों हाथ में यथाविधि मुहपत्ति और रजोहरण अथवा चरवला लेकर गुरु के आगे क्रमश: अतिचार प्रकट करें। (६-७-८) इसके बाद नीचे बैठकर सामायिक (करेमि भंते ) आदि सूत्र यतना से कहें। फिर उठकर 'अब्भुट्ठिओम्हि' आदि पाठ विधिपूर्वक कहें। (९) फिर वांदणा देकर पांच आदि साधु हों तो तीन बार खमावें और बाद में वांदणा देकर 'आयरिय' इत्यादि तीन गाथाका पाठ करें। (१०) इस प्रकार सामायिक सूत्र तथा कायोत्सर्ग सूत्रका पाठ कहकर चारित्राचार की शुद्धि के लिए कायोत्सर्ग करके उसमें दो लोगस्स का मनन करें । फिर यथाविधि कायोत्सर्ग करके सम्यक्त्व की शुद्धि के लिए प्रकट लोगस्स कहें। तथा सर्वलोक में रहे हुए अरिहंत परमात्मा के चैत्यों की आराधना के लिए कायोत्सर्ग करके उसमें एक लोगस्स का मनन करें और इससे शुद्धसम्यक्त्वधारी होकर कायोत्सर्ग पारें । इसके बाद श्रुतशुद्धि के लिए पुक्खरवरदी कहें। (१२-१३) तत्पश्चात् २५ उच्छवास का कायोत्सर्ग करें और यथाविधि पारें । इसके बाद सकल शुभ क्रिया के फल पानेवाले सिद्ध परमात्मा का स्तव कहें। (१४)

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