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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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समाधान : 'करेमि भंते' आदि प्रतिक्रमण के अन्य सूत्रों के प्रणेता जैसे श्रुत स्थवीर भगवंत हैं। वैसे ही यह वंदित्तु सूत्र भी श्रुतस्थवीर महर्षिने रचा है। इसलिए आवश्यकसूत्र की बृहद्वृत्तिमें अक्खरसन्नीसम्म' गाथा के व्याख्यान के समय कहा गया है कि, आचारांगादि अंगप्रविष्ट श्रुत पू.गणधर भगवंतोंने रचा है और आवश्यक आदि अनंगप्रविष्ट श्रुत पू.श्रुतस्थवीर भगवंतोंने रचा है।
शंका : यह श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र आर्षप्रणीत (श्री श्रुतस्थवीर भगवंत द्वारा रचित) है, तो उस पर नियुक्ति आदि की रचना क्यों नहीं हुई ?
समाधानः श्रुतस्थवीर भगवंतो द्वारा रचित ग्रंथो पर नियुक्ति-भाष्य आदि होने ही चाहिए ऐसा कोई नियम नहीं है। अन्यथा (यदि ऐसा नियम माना जाए तो) आवश्यक, दशवैकालिक आदि दस शास्त्रों को छोड़कर शेष सूत्रों पर नियुक्ति नहीं होने से तथा औपपातिक आदि उपांगों पर चूर्णि नहीं होने से, इन सभी शास्त्रोंको भी अनार्ष मानने का प्रसंग आएगा । अर्थात् इन शास्त्रों को श्रुतस्थवीर भगवंतो की रचना नहीं माना जा सकेगा। (बल्कि औपपातिक आदि शास्त्रों का श्रुतस्थवीरकी रचना सभी को मान्य है।) इसलिए शंकाकार की बात अयोग्य है। अर्थात् तात्पर्य यह हैं कि, वंदित्तासूत्र पर नियुक्ति न होने के बावजूद उसके प्रणेता श्रुतस्थवीर भगवंत हैं यह सुनिश्चित है।
वि.सं. ११८३में पू.आ.श्री सिंहसूरिजी तथा पू.आ.भ.श्री जिनदेवसूरिजी ने इस वंदित्तासूत्र पर रचे चूर्णि तथा भाष्य भी हैं, और सुविहित आचार्य भगवंतो द्वारा रचित वृत्तियां (टीकाएं) तो अनेक हैं।
इसलिए जैसे साधु प्रतिक्रमण सूत्र (पगाम सज्झाय) का सन्मान करते हैं। वैसे ही यह श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र भी श्रुतस्थवीर भगवंत की रचना होने से और अतिचार का संशोधक होने से श्रावकों के लिए सन्मान योग्य है।
इस प्रकार श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र पर चूर्णि आदि अनेक शास्त्र होने के बावजूद जो यह सूत्र पीछे से जोडा गया है, इसलिए सर्वथा आदरणीय नहीं है।