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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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मिट्टीमें घट बनने की योग्यता होने के बावजूद घट बनाने के लिए चक्रादि कारणों की भी आवश्यकता पड़ती ही है।
इसी प्रकार यहां भी भव्यात्मामें समाधि एवं बोधिलाभ की योग्यता होने के बावजूद उनकी प्राप्ति में आनेवाले विविध प्रकारके विघ्नों के समूह का निराकरण करके यक्ष, अंबा आदि देव भी समाधि-बोधि देने में समर्थ होते हैं। श्री मेतार्य मुनिवर को पूर्वभव के मित्र देव ने जिस प्रकार सहायता दी थी, उसी प्रकार यहां भी समझें । इसलिए सम्यग्दृष्टि देवताओं की प्रार्थना निरर्थक नहीं ॥४७॥
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नोट: • उपरोक्त पाठ में स्पष्टरुपसे यह सिद्ध किया गया है कि, सम्यग्दृष्टि देव
समाधि-बोधि देने में समर्थ हैं। ४७वीं गाथा के उतरार्धमें 'सम्मदिट्ठी देवा' पद ही है। 'सम्मत्तस्स य सुद्धि' पद नहीं हैं। वंदित्तासूत्र ५० गाथात्मक ही है। सम्यग्दृष्टि देवों से समाधि-बोधि मांगे जा सकते हैं, इसमें कोई दोष नहीं।
इस प्रकार अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिक्रमण की विधि से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं।
(१) प्रतिक्रमण के आद्यंत की चैत्यवंदना बारह अधिकार पूर्वक करें । इसमें बारहवें अधिकार 'वैयावच्चकारी' आदि सम्यग्दृष्टि देवों का है। अर्थात् चतुर्थस्तुति सम्यग्दृष्टि देव-देवी की होती है।
(२) देवसि प्रतिक्रमणमें श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग करने को कहा गया है व उनकी स्तुति कहने को कहा गया है। श्रुतज्ञान की समृद्धि प्राप्त