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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
(३) श्रुतदेवता का प्रतिदिन कायोत्सर्ग व उनकी स्तुति श्रुतसमृद्धि की प्राप्ति के लिए करनी है तथा क्षेत्रदेवता का प्रतिदिन कायोत्सर्ग व स्तुति तृतीय व्रत की रक्षा के लिए करनी है।
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प्रश्न : अभिधान राजेन्द्रकोष में पाक्षिक आदि प्रतिक्रमणमें पक्खि सूत्रके अंतमें सुयदेवया' स्तुति बोलने को कहा गया है या नहीं? यदि कहा गया है तो यहां श्रुतदेवता का अर्थ क्या बताया गया है?
उत्तर : हां, अभिधान राजेन्द्रकोष में पक्खिसूत्रके अंतमें 'सुयदेवया' स्तुति बोलने को कहा गया है तथा इस स्तुति की टीका करते हुए 'सुयदेवया' पद से श्रुतदेवता, श्रुतकी अधिष्ठात्री देवी को ग्रहण किया गया है। यह पाठ निम्नानुसार है।
___ अभिधान राजेन्द्रकोष, भाग-५, 'प' कार विभाग, पडिक्कमण' विभाग में पृष्ठ-३०७ पर पाक्षिक सूत्र के अंत में श्रुतदेवता से विज्ञप्ति करते हुए कहा गया है। यह पाठ निम्नानुसार है। _ “साम्प्रतं प्रस्तुतसूत्रपरिसमाप्तौ श्रुतदेवतां विज्ञापयितुमाहसुयदेवया भगवई, नाणावरणीयकम्मसंघाय। तेसिंखवेउ सययं, जेसिं सुयसायरे भत्ती॥१॥
श्रुतमहत्प्रवचनं श्रुताधिष्ठातृ देवता श्रुतदेवता संभवति च श्रुताधिष्ठातृ देवता यदुक्तं कल्पभाष्ये ॥
सव्वं च लक्खणो वेयं समहटुंति देवता सुत्तं च लक्खणो वेयं जेण सव्वण्णुभासियंति॥
भगवती पूज्यतमा ज्ञानावरणीयकर्मसंघातं ज्ञानघ्नकर्मनिवहं । तेषां प्राणिनां क्षपतु क्षयं नयतु सततमनवरतं येषां किमित्याह - श्रुतमेवातिगंभीरतया अतिशयरत्नप्रचुरतया सागरः समुद्रः श्रुतसागरः तस्मिन् भक्ति बहुमानो विनयश्च समस्तीति गम्यते, ननु श्रुतरुपदेवताया