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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
१२३ देवता, स्मरण करनेवाले जीवो के कर्मों का क्षय करते होने के कारण श्रुतदेवता का कायोत्सर्ग किया जाता है और कायोत्सर्ग में नमस्कार महामंत्र का चिंतन किया जाता है। देवताकी आराधना स्वल्प प्रयत्न से साध्य होने के कारण यह कायोत्सर्ग आठ उच्छवास प्रमाण ही होता है, ऐसा लगता है। ___तथा कायोत्सर्ग करके श्रुतदेवता की 'सुयदेवया भगवई' स्तुति बोलें अथवा अन्य व्यक्ति बोलते हों तो उसे सुनें।
इसी प्रकार क्षेत्रदेवता का भी स्मरण युक्त ही है। इसलिए उनका कायोत्सर्ग करें और कायोत्सर्ग के बाद उनकी स्तुति बोलें । क्षेत्रदेवता का जो प्रतिदिन स्मरण किया जाता है, वह तृतीय व्रत में अभीक्ष्णावग्रहयाचना स्वरुप भावना को सत्य करने के लिए है। (अर्थात् तृतीयव्रत की रक्षा के लिए उसकी भावना में वसति दाता से बार-बार पूछना होता है कि, 'हम यहां रह सकते हैं' इस प्रकार तृतीय व्रत की भावना है। जैसे ते ते मकान मालिकका ते ते क्षेत्रमें अवग्रह होता है। वैसे ही ते ते क्षेत्रका अवग्रह ते ते देवताका भी होता है।) इसलिए क्षेत्रदेवता को भी स्मरण करके उनसे अवग्रह की याचना कर लेने से तृतीय व्रत निर्मल रहता है, इसी आशय से प्रतिदिन क्षेत्रदेवता का कायोत्सर्ग किया जाता है, ऐसा कायोत्सर्गका प्रयोजन लगता है।
नोट : उपरोक्त अभिधान राजेन्द्रकोषके पाठमें प्रतिक्रमण की विधि में.. (१) श्रुतदेवता-क्षेत्रदेवताका प्रतिदिन कायोत्सर्ग करने को कहा गया है व उनकी स्तुति कहने को भी कहा गया है। (२) श्रुतदेवता की जो 'सुयदेवया भगवई' स्तुति है, उसमें श्रुतदेवता का अर्थ श्रुत के अधिष्ठातृ देवता किया गया है। इन श्रुतदेवता के कायोत्सर्ग का उद्देश्य कर्मक्षय बताया गया है। मात्र एक नवकार का ही छोटा कायोत्सर्ग क्यों है, इसका कारण भी बताया गया है।