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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
१२१ जिनको वंदन किया गया है। (५) छठवें अधिकार 'पुक्खरवरदी वड्डे' सूत्रमें (पहली गाथासे) विहरमान जिन की वंदना की गई है। (६) सातवें अधिकार, 'तमतिमिर०' सूत्रमें श्रुतज्ञान की वंदना की गई है। (७) आठवें अधिकार 'सिद्धाणंबुद्धाणं' सूत्रमें सभी सिद्धों की स्तुति की गई है। (८) ____ नौवें अधिकारमें जो देवाण वि देवो' सूत्र से तीर्थाधिपति श्रीमहावीर स्वामीकी वंदना होती है । (९) दसवें अधिकारमें 'उज्जित सेल ।' सूत्रसे गिरनार तीर्थ की वंदना होती है। (१०) ग्यारहवें अधिकारमें ‘चत्तारिअट्ठ' सूत्र से अष्टापद तीर्थ की वंदना की जाती है । (११) बारहवें एवं अंतिम अधिकार में 'वैयावच्चगराणं' सूत्र से सम्यग्दृष्टि देवता का स्मरण किया गया है।॥१-२-३॥
(अब १२ अधिकार के शुरुआत के पद बताए गए हैं।) नमुत्थुणं १, जे अ अइया सिद्धा २, अरिहंत चेइयाणं ३, लोगस्स उज्जोअगरे ४, सव्वलोले ५, पुक्खरवरदी ६, तमतिमिरपडल ७, सिद्धाणं बुद्धाणं ८, जो देवाण वि देवो ९, उज्जित सेल सिहरे १०, चत्तारि अट्ठ ११, वैयावच्चगराणं, ये १२ अधिकार के प्रथम पद हैं। ॥५॥
___ इस प्रकार चैत्यवंदन भाष्य की गाथाओं में कहे गए अधिकारों के माध्यम से पूर्वोक्त विधि से देवों को वंदन करके चार खमासमणा से गुरु भगवंतो की वंदना की जाती है।
नोट:
अभिधान राजेन्द्रकोषमें प्रतिक्रमण की विधि बताते हुए प्रारम्भमें चार थोय से चैत्यवंदना करने की विधि स्पष्टरुप से देखने को मिलती है। आगमवचन तथा युक्ति से प्रथम 'इर्यावही' पडिक्कमण करना चाहिए, यह भी विधि बताई गई है।