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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
११९ इसमें प्रारम्भ की चैत्यवंदना चार थोय से करने को कहा गया है या नहीं?
उत्तर : हां, प्रतिक्रमण के प्रारम्भ की चैत्यवंदना चार थोय से ही करने को कहा गया है । अभिधान राजेन्द्रकोष भाग-५, '५' कार विभाग, 'पडिक्कमण'की चर्चा करते हुए पृष्ठ-२६७ पर प्रतिक्रमण की विधि बताई गई है।जो इस प्रकार है- (यहां प्रस्तुत चर्चा में उपयोगी पाठ ही ग्रहण किए हैं।)
(६)प्रतिक्रमणविधिश्चैवं प्रतिक्रमणहेतुगर्भाऽऽदौ उक्तः
तत्र चाऽऽवश्यकऽऽरम्भे चैत्यवन्दनाधिकारोक्ताऽऽगमवचनप्रामाण्यात्-......।
इत्यादियुक्तेश्च पूर्वमीर्यापथिकी प्रतिक्रामती । प्रतिक्रामता च तां मानसोपयोगं दत्त्वा त्रीन् वारान् पदन्यासभूमिः प्रमार्जनीया, एवं च तां प्रतिक्रम्य साधुः कृतसामायिकश्च श्रावकः आदौ श्रीदेवगुरुवन्दनं विधत्ते, सर्वमप्यनुष्ठानं श्रीदेवगुरुवन्दनविनयबहुमानाऽऽदि भक्तिपूर्वकं सफलं भवति।आह च
"विणयाहीआ विज्झा दिति फलं इहे परे अ लोगम्मि । न फलंति विणयहीणा, सस्साणि व तोयहीणाणि ॥१॥ भत्तीइ जिणवराणं, छिज्जंती पुव्वसंचिआ कम्मा ।
आयरिअनमुक्कारेण, विज्जा मंता य सिझंति ॥२॥ इति हेतोः "पढमऽहिगारे वंदे, भावजिणे १ बीअए उ द्रव्यजिणे २ । इगचेइअठवणजिणे, तइअचउत्थम्मि नामजिणे ३-४ ॥१॥ तिहुअणठवणजिणे पुण, पंचमए ५ विहरमाणजिण छढे ६ ।
सत्तमए सुअनाणं ७, अट्ठमए सव्वसिद्धथुई ८ ॥२॥ तित्थाहिववीरथुई, नवमे ९ दसमे अ उज्जयंतथुई १० । अट्ठावयाइ इगदिसि ११, सुदिट्ठिसुरसमरणा चरमे १२ ॥३॥
नमु १ जे अइय २ अरिहं ३ लोग ४ सव्व ५ पुक्ख ६ तम ७ सिद्ध ८ जो देवा ९ ।