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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
'हे भगवंत ! स्तव तथा स्तुति मंगल द्वारा जीव क्या प्राप्त करता है ? गौतम ! स्तव - -स्तुति मंगल द्वारा जीव ज्ञान-दर्शन- चारित्र एवं बोधि लाभ प्राप्त करता है। ज्ञान- दर्शन - चारित्र एवं बोधि लाभ से जीव अंतक्रिया (सर्वसंवर रुपी मोक्षक्रिया) करता हैं । अथवा वैमानिक देवलोकमें उपपात के योग्य (=वैमानिक देवलोक प्राप्त हो ऐसी) क्रिया की आराधना करता है।' इस सूत्रपाठ से स्थापना निक्षेप आराध्य हैं। यह सिद्ध होता है। इस सूत्रमें स्तव = स्तवन एवं स्तुति अर्थात् तीन स्तुति समझनी हैं। इन तीन स्तुतिमें दूसरी स्तुति चैत्यवंदन के अवसर पर स्थापना निक्षेप के लिए भगवान के समक्ष की जाती है। तथा स्थापना के आगे की स्तुति से ज्ञान - दर्शन - चारित्र एवं बोधि लाभ से स्वर्ग के सुख एवं मोक्ष के सुख की प्राप्ति होती है, इत्यादि बातें आगे स्पष्ट करेंगे ।'
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प्रतिमाशतक ग्रंथमें पू.महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजा 'स्तुतिः स्तुतित्रयं प्रसिद्धम्' इस प्रकार की स्तुति से तीन स्तुति को प्रसिद्ध बताते हैं । इसका यह अर्थ नहीं कि, चौथी स्तुति अविहित है । ग्रंथकार श्री चतुर्थस्तुति को विहित मानते हैं । यह आगे देखेंगे । लेखक के अनुसार प्रतिमाशतक के भाषांतरकार ने जो बात कोष्टकमें कही है, वह किस आधार पर लिखी है, यह भी विचारणीय है। उन्होंने विचारामृत संग्रह ग्रंथ का अवलोकन किया होता तो वे यह विधान नहीं करते। क्योंकि, पू. आ.भ. श्री कुलमंडनसूरिकृत विचारामृसंग्रह ग्रंथमें स्पष्ट कहा गया है कि, श्रुतदेवतादि के कायोत्सर्ग पूर्वधरों के कालमें भी संभव थे। यह पाठ निम्नानुसार है।
'श्रीवीरनिर्वाणात् वर्षसहस्त्रे पूर्वश्रुतं व्यवच्छिन्नं । श्रीहरिभद्रसूरिस्तदनु पंचपंचाशता वर्षेः दिवं प्राप्ता तद्ग्रंथकरणकालाच्चाचरणायाः पूर्वमेव संभवात् श्रुतदेवतादिकायोत्सर्गः पूर्वधरकालेऽपि संभवति स्मेति ॥ "
भावार्थ : श्री वीर परमात्मा के निर्वाण से हजार वर्ष व्यतीत होने पर
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