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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी औचित्य पालन का गुण है।
गुण को दोष बताना, यहबुद्धि का विपर्यास है।
इस प्रकार विचारामृत संग्रह, पंचवस्तु, जीवानुशासन, आवश्यकसूत्र, ठाणांगसूत्र आदि के पाठ देखने के बाद श्रुतदेवतादि के कायोत्सर्ग के विषयमें कोई शंका ही नहीं रहती हैं। फिर भी मुनिश्री जयानंदविजयजी मताग्रह से विचारामृत संग्रहादि ग्रंथोके पाठों की उपेक्षा करके 'सत्य की खोज' पुस्तक के पृष्ठ-६७ पर प्रश्न-३१२ के विस्तृत उत्तरमें निराधार दलीलें कर रहे हैं। इन सभी दलीलों पर लिखने बैठें तो काफी पन्ने भर जाएंगे। इसलिए कुछ मुद्दों पर ही प्रकाश डालेंगे। __-पंन्यास श्रीकल्याणविजयजी म.सा.की 'प्रतिक्रमण विधि संग्रह' नामक पुस्तक के आधार पर कई उलटी सुलटी बातें करते हैं । पंन्यासजी महाराजने यहां श्रुतदेवतादि के कायोत्सर्ग को अविहित नहीं बताया है। मात्र उसके इतिहास के विषयमें अपनी अनभिज्ञता बताई है । लेखक श्रीजयानंदविजयजी उसे आगे धरकर पूर्वाचार्यों की प्रवृत्ति का खंडन करने लगे हैं । परन्तु लेखक से प्रश्न है कि, आवश्यक चूर्णि आदिमें प्रतिक्रमण के प्रारम्भ के चैत्यवंदन की विधि बताई ही नहीं है। प्रवचन सारोद्धार आदि ग्रंथोमें १२ अधिकारपूर्वक चैत्यवंदना की विधि बताई है। तो आप उस समय इन दोनों ग्रंथो के बीच के इतिहास के बारेमें कोई विकल्प किए बिना प्रतिक्रमण की प्रारम्भ की चैत्यवंदना करना क्यों प्रारम्भ किया है? इसका उत्तर देंगे।
प्रवचन सारोद्धार में १२ अधिकारपूर्वक चैत्यवंदना करने को कहा गया है। इसमें से आप वैयावच्चगराणं० बोलकर कायोत्सर्ग तथा स्तुति नहीं करते। इसलिए १२ अधिकारपूर्वक चैत्यवंदना करते ही नहीं । तो आप इन ग्रंथो के विरोधी कहलाएंगे या नहीं? चैत्यवंदना करने की ग्रंथ की एक बात मानना और १२ अधिकार सहित पूर्ण चैत्यवंदना करने की बात न मानना, यह