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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
वह विटपुरुष अर्थात् अत्यंत कामी पुरुष की तरह कामासक्त होने से क्या काममें आयेगा? तथा वे देव अविरतिधर है, उससे हमे क्या प्रयोजन हैं ? तथा जिनकी आंखे नहीं मिचती हैं, इसलिए चेष्टारहित होने से मृततुल्य पुरुष के समान हैं। जैन शासनके किसी भी काम में नहीं आते।" इत्यादि अनेक प्रकार से पूर्वोक्त देवताओं का अवर्णवाद बोले, (वह जीव इस प्रकार का मोहनीय कर्म बांधता हैं कि, उस कर्म के प्रभाव से उस जीव के लिए जैनधर्मकी प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है। क्योंकि, यहां टीकाकार श्रीअभयदेवसूरिजी उत्तर देते हैं कि,) अनुग्रह तथा उपघातको देखने से देवता हैं । अर्थात् देवताओं द्वारा किए गए अनुग्रह तथा उपघात देखने से देवता की उपस्थिति सिद्ध होती है। देवता जो कामासक्त हैं, वे शाता वेदनीय एवं मोहनीय कर्म के उदय से हैं। अविरति कर्म का उदय होने से विरति नहीं है। देवभव के स्वभाव से आंख नहीं मिचती और जो अनुत्तरवासी देव चेष्टारहित है, उसमें वह देव कृतकृत्य होने से उन्हें कोई भी कार्य करने का नहीं रहता है। इसलिए चेष्टारहित हैं। वर्तमानमें तीर्थ की प्रभावना नहीं करते, इसमें कालदोष है । अन्य स्थल पर करते भी हैं । इसलिए देवताओं का अवर्णवाद बोलना युक्त नहीं। ____ (अब उन देवताओं का वर्णवाद करने से जीव सुलभबोधि होता है।) जैसे कि, देवताओं का कैसा शुभ आश्चर्यकारी शील है। मन विषय से विमोहित होने के बावजूद जिनभवनमें देवांगनाओं के साथ हास्यादिक नहीं करते । इत्यादि देवताओं का गुण बोले जाएं तो सुलभबोधित्व का कर्म उपार्जित करता है।)
श्रुतदेवतादिकी स्तुति बोलने में उनका वर्णवाद होता है । ठाणांग सूत्रमें देवताओं का वर्णवाद दोषरुप नहीं कहा गया है, बल्कि गुणरुप कहा गया है।
इसलिए श्रुतदेवतादि के कायोत्सर्ग पूर्वधरों के कालसे किए जाते हैं और इसमें कोई दोष नहीं । गुण ही है। आज्ञापालनका गुण है। उचित के विषयमें