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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी
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१०. कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्रसूरिजीने योगशास्त्रमें चार थोय का समर्थन किया है।
११- (i) पू.आ.भ.श्री कुलमंडनसूरिजीने विचारामृत संग्रह ग्रंथ में.... (ii) पू.आ.भ. श्री सोमसुंदरसूरिजीने स्वकीय सामाचारी में...... (iii) पू. आ. भ. श्री देवसुंदरसूरिजीने स्वकीय सामाचारीमें... (iv) पू. आ. भ. श्री नरेश्वरसूरिजीने स्वकीय सामाचारी में...... (V) पू. आ. भ. श्री तिलकाचार्यजीने स्वकीय सामाचारी में..... (vi) पू. आ. भ. श्री भावदेवसूरिजीने यतिदिनचर्या में.....
(vii) कुरोज बादशाह प्रतिबोधक पू. आ.भ. श्री जिनप्रभसूरिजीने विधिप्रपामें...
(viii) पू.आ.भ. श्री जयचंद्रसूरिजीने प्रतिक्रमण गर्भित हेतु ग्रंथमें..... चैत्यवंदना में चार-चार थोय कहने की बात कही है।
१२- (i) पू. महोपाध्याय श्रीमानविजयजी महाराजाने धर्मसंग्रह ग्रंथमें... (ii) पू. महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराजाने प्रतिक्रमण गर्भितहेतुमें...
(iii) श्रीनमि नामक साधु भगवंत ने षडावश्यक बालावबोधमें चार थोय कही हैं।
इत्यादि अन्य आचार्यों ने भी चार थोय कहने की बात कही हैं।
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इस प्रकार इन सभी पू.आचार्य भगवंतो की गुरु परम्परा में तथा शिष्य परम्परा में. हजारों पू.आचार्यो भगवंतोने चार थोय को मान्य किया है । और आचरण किया है । इसलिए सुज्ञजन समझ सकतें हैं कि, त्रिस्तुतिक मत शास्त्रविरोधी एवं पूर्वाचार्यों की सामाचारी से विरुद्ध हैं । असत्य-मिथ्या आग्रहसे प्रारम्भ हुआ था और तुरंत लुप्त हो गया था । यह मत शास्त्रों व शास्त्रमान्य सुविहित परम्परा का अपलाप करता है ।