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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी का कायोत्सर्ग तो चौमासी आदि के प्रतिक्रमण में करने को कहा गया है, तो फिर वर्तमान में प्रतिदिन क्यों किया जाता है? ____इस प्रश्न का उत्तर जीवानुशासन ग्रंथ देता है । इस ग्रंथ के रचयिता श्रीकुमुदचंद्र दिगम्बर को वाद में जीतनेवाले, ३३ हजार मिथ्यादृष्टियों के घरों को प्रतिबोध करनेवाले, ८४ हजार श्लोक प्रमाण स्याद्वाद रत्नाकर ग्रंथ के रचयिता सुविहित शिरोमणि पू.आ.भ.श्री देवसूरिजीने रचा है। इस जीवानुशासन ग्रंथ का यह पाठ इस प्रकार है।
"ननु यदि चतुर्मासिकादिभणितमिदं किमिति सांप्रतं नित्यं क्रियत इत्याह
संपइ निच्चं कीरइ संनिज्जा भावओविसिद्धाओ। वेयावच्चगराणं, इच्चाइ वि बहुयकालओ ॥१००३॥ व्याख्या ॥ सांप्रतमधुना नित्यं प्रतिदिवसं क्रियते विधीयते कस्मात् सांनिध्याभावस्तस्य कारणाद्विशिष्टादतिशायिनो वैयावृत्त्यकराणां प्रतीतानामित्याद्यपि न केवलं कायोत्सर्गादीत्यपेरर्थः।आदिग्रहणात्संतिकराणामित्यादि दृश्यं प्रभूतकालात् बहोरनेहस इति गाथार्थः॥"
भावार्थ : पूर्वपक्ष : यदि चातुर्मासी आदि में क्षेत्रदेवतादि का कायोत्सर्ग करने को श्रीभद्रबाहुस्वामीजीने कहा है, तो फिर संप्रतिकालमें वर्तमानकालमें प्रतिदिन कायोत्सर्ग क्यों किया जाता है? ।
उत्तरपक्ष : वर्तमानकालमें नित्य प्रतिदिन जिस क्षेत्रदेवतादि का कायोत्सर्ग सान्निध्याभाव होने से अर्थात् पूर्वकालमें जब-तब कभी भी एक बार कायोत्सर्ग करने से वे देव शासन की प्रभावना के अवसर पर उपद्रवों को नष्ट करते थे। जबकि वर्तमानकालमें कालदोष से जब-तब एक बार कायोत्सर्ग करने से सांनिध्य नहीं करते। इसलिए उन्हें प्रतिदिन जागृत करने पर वे सांनिध्य करते हैं। इसलिए नित्य प्रतिदिन कायोत्सर्ग किए जाते हैं।
ये कायोत्सर्ग करने से विशेष अतिशयवान वैयावृत्त्य करनेवाले जो देवता