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त्रिस्तुतिक मत समीक्षा प्रश्नोत्तरी एक समान ढंग से सभी अनुष्ठानों में जिन देव-देवियोंका स्मरण विहित किया है, उसका अनुसरण करनेवाले बनें, इसी में हमारा हित है।
प्रश्न : क्या पू.महोपाध्यायजी श्रीयशोविजयजी महाराजाने 'तीन थोय' को मान्य किया है ? और चौथी थोय का खंडन किया है ? 'सत्य की खोज' पुस्तक के (नूतन संस्करणके) पृष्ठ-२०८ पर पू.महोपाध्यायजी श्रीयशोविजयजी म.कृत प्रतिमाशतक के आधार पर अपने मत को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है, क्या वह योग्य है? ___उतर : नहीं, प्रतिमाशतक के ग्रंथकारश्री ने गाथा-२की टीकामें कहीं भी 'तीन थोय' विहित नहीं बताया है और चतुर्थ स्तुतिको अविहित नहीं दर्शाया है। इसलिए 'सत्य की खोज' पुस्तक के लेखक मुनिश्री जयानंदविजयजी की बात असत्य है
_ 'सत्य की खोज' पुस्तक में सत्य को खोजना पड़ेगा किन्तु सत्य नहीं मिलता ऐसी स्थिति है। मुनिश्री ने सत्य को इस हद तक दबा देने का प्रयास किया है कि पूरी पुस्तक में सत्य कहीं भी खोजने पर भी नहीं मिलता है।
_ 'सत्य की खोज' पुस्तकमें लेखकश्रीने प्रतिमाशतक के आधार पर जिस प्रकार की बात की है, वैसी बात प्रतिमाशतक में की ही नहीं गई है। इस विषयमें लेखकश्री ने कुतर्क करके बात को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत किया है। 'स्तुतित्रयं प्रसिद्धम्' मात्र इस पद को पकड़कर कुतर्कों द्वारा अपनी बात का समर्थन करते हैं। ___ मुनिश्री लगातार ऐसी भ्रांति में रमते हैं कि, जिससे उन्हें जहां भी 'स्तुतित्रय' पद दिखता है वहां उन्हें अपने मत की पुष्टि दिखाई देती है और बिना सोचे आगे-पीछे के संदर्भोको देखे बिना ही वे इस पद से लिपट जाते हैं। उसके आधार पर अपने मत के पैर जमीन पर टिकाने के प्रयास करने लगते हैं। किन्तु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिलती है, बल्कि पूरी तरह से विफलता ही मिलती है। जिनवचनका द्रोह करनेवालेको कहीं भी कभी भी सफलता नहीं ही मिल सकती।